विष्णु द्वारा नारद को वानर का चेहरा देना : नारदजी तत्काल बैकुण्ठ लोक जा पहुंचे और श्रीहरि विष्णुजी को अपने मन की बात बता दी। | श्रीहरि विष्णु मुस्कराकर बोले, “मुनिवर! मैं सदैव आपका हित चाहता हूं। मैं आपको
श्रीहरि का रूप दे रहा हूं।” यह कहकर उन्होंने नारदजी को बंदर का चेहरा दे दिया, क्योंकि हरि का अर्थ बंदर भी होता है।
नारदजी प्रसन्न होकर वहां से चले गए और यथाशीघ्र स्वयंवर में जा पहुंचे। राज-कन्या वरमाला लेकर जिधर भी जाती नारद जी वहीं जा बैठते । राजकुमारी को नारद जी का वानररूप दिखाई दे रहा था। वह उन पर क्रोधित होकर वहां से परे हट गई। उसी स्वयंवर में भगवान विष्णु भी एक राजकुमार के रूप में उपस्थित थे। कन्या ने वरमाला उनके गले में डाल दी। राजा ने अपनी कन्या का विवाह उनसे कर दिया। यह देख नारदजी बौखला उठे।
नारदजी दुखी होकर एक सरोवर के निकट जा पहुंचे। सहसा उनकी दृष्टि सरोवर के जल में पड़ी तो उन्हें अपना वानर का रूप दिखाई दिया। वानर का रूप देखकर नारद जी को क्रोध आ गया। वे क्रोध में भरे हुए बैकुण्ठ लोक पहुंचे और श्रीहरि को खरी-खोटी सुनाई कि उन्होंने उनके साथ छल किया है।
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