विष्णु को नारद का शाप : क्रोधित नारद ने अपने इष्ट श्रीहरि को शाप दे दिया, “हे हरि! तुमने मेरे साथ छल करके अच्छा नहीं किया। अपनी कपट माया से सारे संसार को छलने वाले तुम दूसरे को सुखी होता देख नहीं सकते। सागर-मंथन के बाद तुमने मोहिनी रूप धारण करके दैत्यों से अमृत कलश छीन लिया था और उन्हें अमृत की जगह मदिरा पान कराके उन्हें उन्मत्त बना दिया था। हे विष्णु ! तुमने स्त्री के लिए मुझे दुखी किया है। मैं तुम्हें शाप देता हूं कि त्रेता युग में तुम भी मनुष्य रूप में स्त्री-वियोग को सहोगे। तुमने मेरी सूरत वानर जैसी बना दी है, तब ये वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे।”
विष्णु ने नारद के शाप को स्वीकार कर लिया। शाप स्वीकार करते ही माया अदृश्य हो गई और दोनों फिर से अपने वास्तविक रूप में आ गए। माया के नष्ट होते ही नारदजी का ज्ञान भी लौट आया। उन्हें गहरा पश्चाताप होने लगा कि उन्होंने यह क्या कर दिया। वे बार-बार श्री विष्णु से अपने शाप के लिए क्षमा मांगने लगे। भगवान ने उनके अहंकार को नष्ट कर दिया और उन्हें हृदय से लगा लिया।
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