विष्णु का मत्स्य अवतार : राजर्षि सत्यव्रत भगवत्प्राप्ति के लिए केवल जल पीकर कठिन तपस्या कर रहे थे। एक दिन कृतमाला नदी में जाकर जब वे तर्पण कर रहे थे, तब उनकी अंजलि में एक छोटी-सी मछली आ गई। राजा ने जल के साथ उसे भी जल में छोड़ दिया। तब वह मछली बोली, “राजन! जल में मछलीमार जंतु मुझे मारकर खा जाएंगे। आप मेरी रक्षा करें।” | सत्यव्रत ने उसे अपने कमण्डल में डाल लिया और आश्रम ले आए। एक ही रात में मछली इतनी बड़ी हो गई कि कमण्डल में नहीं समाई। तब राजर्षि ने उसे एक कुएं में छोड़ दिया। वहां वह कुछ ही देर में कुएं के बराबर हो गई। तब राजा ने उसे समुद्र में छोड़ दिया। वहां भी वह अत्यन्त विशाल हो गई। उसे देखकर राजा ने पूछा, “भगवन! आप कौन हैं? निश्चय ही आप कोई अवतार हैं।”
मछली बोली, “आज से सातवें दिन जल महाप्रलय होगी। उस समय तेरे पास एक नौका आएगी। उसके आते ही तू उस नाव को मेरे सींग से बांध देना।” कहकर वह अदृश्य हो गई।
सातवें दिन महाप्रलय आ गई। देखते-देखते समस्त भू-मण्डल जल में डूब गया। तभी वह नाव आई। राजा सत्यव्रत उस नाव में सप्तर्षियों के साथ बैठ गए। उसी समय सींगधारी मत्स्य को देखकर उसने नाव को उसके सींग से बांध दिया। उसने उन्हें एक उच्च शिखर पर पहुंचा दिया। तब राजा के पूछने पर उस मत्स्य ने बताया कि वे विष्णु के अवतार हैं। सृष्टि की रक्षा के लिए ही उन्होंने यह अवतार लिया था।
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