तुलसी का विष्णु को शाप : तुलसी को जब यह पता चला कि उसका सतीत्व हरण करने वाला उसका पति नहीं कोई और है तो उसने क्रोध में भरकर पूछा, “सच बता दुष्ट ! तू कौन है? तू मेरा पति नहीं हो सकता। यदि तूने सच नहीं बोला तो तू नष्ट हो जाएगा।” | सती तुलसी के ऐसा कहते ही विष्णु की माया नष्ट हो गई और वह अपने वास्तविक रूप | में आ गए। विष्णु को सामने देखकर सती तुलसी को क्रोध चढ़ आया। वह बोली, “प्रभु ! मैं तो आपकी भक्त थी। मेरे स्वामी भी आपके भक्त थे। फिर आपने ऐसा क्यों किया?
“तुलसी! देव कार्य के लिए मुझे भगवान आशुतोष शिव की आज्ञा से यह करना पड़ा। तेरा पति शंखचूड़ तेरे सतीत्व के रहते अजेय था। उसने देवताओं का राज्य छीनकर अच्छा नहीं किया था। इसलिए उसका वध जरूरी था।” विष्णु ने उसे समझाना चाहा।।
परंतु तुलसी ने उन्हें शाप दे डाला, “विष्णु ! तुमने दयाहीन होकर पाषाण के समान यह कृत्य किया है। मेरा सती धर्म नष्ट करके तुम मेरे पति के वध के कारण बने हो। मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम पत्थर बनकर सदैव मेरे पैरों में पड़े रहोगे।”
तभी से विष्णु पत्थर के रूप में तुलसी के नीचे विराजमान रहते हैं। सैकड़ों कीड़ों ने उसमें | छेद करके चक्र बना दिए। इसी से वे शालिग्राम कहलाते हैं।
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