विष्णु द्वारा छल से तुलसी का सतीत्व भंग : शिव के स्मरण करते ही विष्णु प्रकट हो गए। शिव ने विष्णु को आकाशवाणी की बात | बताई। तब विष्णु ने शिव को आश्वस्त किया कि देव हित के लिए उन्हें छल का सहारा भी लेना पड़ेगा तो वे पीछे नहीं हटेंगे। स्वयं के मान-अपमान से जनकल्याण श्रेष्ठ हुआ करता है।
विष्णु ने माया से ब्राह्मण का वेश धारण किया और शंखचूड़ के शिविर में जा पहुंचे। ब्राह्मण | को सम्मुख देख शंखचूड़ ने उनका सत्कार किया और कुछ भी मांगने को कहा।
विष्णु बोले, “हे असुरराज ! पहले आप वचन दीजिए कि जो मैं आपसे मांगूगा, वह आप | मुझे देने में हिचकिचाएंगे नहीं।” | शंखचूड़ ने विष्णु को वचन दे दिया। तब विष्णु ने शंखचूड़ से उसका विष्णु रक्षा कवच’ मांग लिया। शंखचूड़ ने विलंब किए बिना ही वह रक्षा कवच ब्राह्मण रूपी विष्णु को दे दिया।
ब्राह्मण उसे आशीर्वाद देकर चला आया। वहां से वह शंखचूड़ का रूप बना महल में पहुंचा। अपने पति को युद्धभूमि से वापस आया देख तुलसी बहुत प्रसन्न हुई। अकेले वापसी का कारण पूछने पर शंखचूड़ बने विष्णु ने कहा, देवताओं से संधि हो गई है, इसलिए वह चला आया है। वहां रहकर विष्णु ने तुलसी से रमण किया और उसका छल से सतीत्व हर लिया। परिणामस्वरूप शंखचूड़ की मृत्यु हो गई।
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