पंडित ने अपनी गलती मानी : घर लौटकर पंडितजी को नींद नहीं आई। वह चारपाई पर पड़े-पड़े सोचते रहे। यह आदमी पढ़ालिखा नहीं है। विद्वान
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महर्षि भरद्वाज और अप्सरा घृताची : महर्षि भरद्वाज हरिद्वार के निकट स्थित एक आश्रम में निवास करते थे। वे बड़े विद्वान और तत्वज्ञानी थे। एक
द्रोण का जन्म : समय आने पर एक दिन द्रोण से एक दिव्य शिशु का जन्म हुआ। महर्षि भरद्वाज ने इसका नामकरण किया’ द्रोण’। शिशु
द्रोण और द्रुपद की मित्रता : आश्रम में विद्याध्ययन करते समय द्रोण का व्यवहार अपने सहपाठी विद्यार्थियों के प्रति प्रायः मित्रवत ही रहता था, किंतु
द्रोण की महर्षि परशुराम से भेंट : आचार्य अग्निवेश के आश्रम में शिक्षण कार्य पूर्ण करने के पश्चात द्रोण ब्राह्म-कर्म (अध्यापन) करते हुए जीवन व्यतीत
द्रोण को धनुर्विद्या का दान : “वत्स द्रोण!” महर्षि परशुराम गंभीरता से बोले, ‘जिस उद्देश्य से तुम मेरे पास आए हो, उसे अब मैं पूर्ण
द्रोण की अभावग्रस्त गृहस्थी : द्रोण का विवाह हस्तिनापुर के राजगुरु कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। कृपाचार्य और कृपी के । पिता महर्षि
बालक अश्वत्थामा का रोष : बालक अश्वत्थामा का रोष ‘माताश्री !” अश्वत्थामा रोष-भरे स्वर में बोला, “यदि उनका कथन अनुचित है और मेरे भाग्य में
द्रोण की भाव विह्वलता : कृपी से बालक अश्वत्थामा की बात का कोई उत्तर देते न बना । विवशता के कारण उसकी आंखों से झर-झर
द्रोण की कृपी का परामर्श : द्रोण की कृपी का परामर्श ‘कृपी!” द्रोण विवश भाव से बोले, “कभी-कभी तो इच्छा होती है कि इस अभावग्रस्त
द्रोण की पांचालराज द्रुपद से भेंट : कृपी का परामर्श मानकर वे तुरंत पांचाल राज्य की ओर चल पड़े। राजमहल के द्वार पर पहुंचकर द्रोण
दोण का अपमान : महाराज द्रुपद ने गंभीरता से द्रोण की ओर देखा, “ब्रह्मन् ! अपनी दीन दशा देख रहे हो।’ द्रोण ने द्रुपद की
द्रोण का प्रत्युत्तर : “महाराज द्रुपद!” द्रोण गंभीर स्वर में बोले, “आज से पहले मैं इस बात को केवल सुना करता था कि राजा और
द्रोण हस्तिनापुर की ओर : पांचालराज द्रुपद के तिरस्कार भरे व्यवहार ने द्रोण को उद्वेलित कर दिया था। किसी तरह भी धनजन शक्ति को प्राप्त
द्रोण का चमत्कार : बालक कुएं के चारों ओर से उसमें पड़ी गेंद देख रहे थे। द्रोण ने बालकों का कोलाहल सुना तो उनकी ओर