द्रोण हस्तिनापुर की ओर

द्रोण हस्तिनापुर की ओर : पांचालराज द्रुपद के तिरस्कार भरे व्यवहार ने द्रोण को उद्वेलित कर दिया था। किसी तरह भी धनजन शक्ति को प्राप्त करने की लालसा जहां उनसे स्वभाव के विरुद्ध कुछ करवाना चाहती थी, वहीं वे यह भी जानते थे कि ब्राह्मण को अपने व्यक्तिगत जीवन से ऊपर उठकर समाज के उत्तरदायित्व का निर्वाह करना चाहिए। | द्रोण गहरे असमंजस में उलझ गए थे। उन्हें कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। अंततः वे अनिश्चय की स्थिति में ही हस्तिनापुर की ओर चल पड़े।
सूर्यास्त होने में घड़ी-भर का ही समय शेष था। द्रोण ने हस्तिनापुर की सीमा में प्रवेश किया। वहां सघन वृक्षों की छाया तले बने कुएं से उन्होंने शीतल जल पीया और छाया में विश्राम करने लगे। | द्रोण को वहां विश्राम करते अधिक समय न हुआ था, तभी उन्होंने देखा कि निकट ही मैदान में खेल रहे बालकों की गेंद उछलकर एकाएक कुएं में जा गिरी। सभी बालक कुएं के चारों ओर इकट्ठे होकर उसमें झांकने लगे। वे अपनी गेंद को निकालने का उपाय ढूढ़ रहे थे।

द्रोण हस्तिनापुर की ओर

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