द्रोण का चमत्कार : बालक कुएं के चारों ओर से उसमें पड़ी गेंद देख रहे थे। द्रोण ने बालकों का कोलाहल सुना तो उनकी ओर आकर्षित हो गए। उन्होंने संकेत से एक बालक को अपने निकट बुलाया। बालक ने द्रोण को करबद्ध होकर प्रणाम किया। बालक के शिष्टाचार से प्रसन्न होकर द्रोण बोले, “वत्स! तुम कौन हो?”
* श्रीमन् ! मैं युधिष्ठिर हूं?” बालक बोला, “महाराज पांडु और देवी कुंती का ज्येष्ठ पुत्र।”
द्रोण स्नेहवश बालक के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, “क्या तुम कुएं में गिरी हुई गेंद को पुनः प्राप्त । करना चाहते हो ?’
‘इच्छा तो है श्रीमन् ! किंतु ऐसा होना संभव नहीं लगता।”
द्रोण ने अपनी अंगूठी कुएं के जल में फेंक दी और क्षण भर में अभिमंत्रित तिनकों को परस्पर जोड़ते-जोड़ते अंगूठी सहित गेंद को उन्होंने बाहर निकाल लिया।
द्रोण के इस कार्य ने सभी बालकों को चमत्कृत कर दिया था।