Samjhdar Kachhua | समझदार कछुआ

Samjhdar Kachhua | समझदार कछुआ

Samjhdar Kachhua | समझदार कछुआ : भूखी लोमड़ी के हाथ एक बार एक कछुआ आ लगा। लेकिन कछुए की मजबूत ढाल होने | की वजह से लोमड़ी उसे खा नहीं पा रही थी। कछुए को भी अपनी जान की पड़ी थी, वह बोला, | “क्यों नहीं तुम कुछ देर के लिए मुझे पानी में डाल देती, ताकि मेरी खाल नरम पड़ जाए।” | लोमड़ी ने मन-ही-मन कहा, “वाह ! शिकार खुद बता रहा है कि उसे कैसे खाऊं। कह भी | ठीक रहा है। वह कछुए को एक नदी के किनारे ले गई और उसे पानी में छोड़ दिया। पानी में धीरे-धीरे तैरता कछुआ नदी के बीच पहुंच गया और वहीं से हंसकर बोला, “मुझे उम्मीद है, तुम्हारी चतुराई की बातें अब लोग नहीं कहेंगे। बोलो…तुम चतुर हो या मैं ?”

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