Jab Ati Pahuncha Deti Hain Gati | जब अति पंहुचा देती हैं गति
Jab Ati Pahuncha Deti Hain Gati | जब अति पंहुचा देती हैं गति : एक गांव में एक पेड़ पर एक बंदर रहता था। जब भी उसे भूख सताती, वह गांव में जाता और छोटे बच्चों के हाथ से खाने की चीजें झपट लेता। कभी-कभी तो वह किसी घर की रसोई में घुस जाता और सारी चीजें फैला देता। वहां उसे जो भी अच्छा खाने को मिलता, उठा लेता और दीवार की मुंडेर पर बैठकर आराम से खाता।।
कुछ अनुभवी बंदरों ने उसे मना भी किया कि ऐसा करना ठीक नहीं। बाकी बंदर भूख लगने पर पेड़ में लगने वाले फल-फूल खाकर अपना पेट भरते थे।
लेकिन नटखट बंदर ने अपने साथियों की बात पर कान न दिया।
एक दिन की बात है…उस नटखट बंदर को जोरों से भूख सता रही थी। वह एक घर में जा घुसा, लेकिन वहां उसे खाने को कुछ न मिला। तभी उसने देखा कि बहुत सारे कपड़े धूप में सूख रहे हैं। उसने रस्सी पर टंगी एक कमीज उतारी और लगा शोर मचाने।
घर के लोग बाहर आए तो देखा कमीज हाथ में लिए बंदर कूद रहा है। उन्होंने रोटी का एक टुकड़ा उसकी तरफ फेंका, बंदर उसे उठाकर ले गया और कमीज को वहीं छोड़ गया। बंदर खुश था कि खाना पाने का कितना आसान तरीका हाथ लग गया।
अगले दिन वह एक घर की छत पर जा बैठा। वहां गेहूं से भरा संकरे मुंह वाला एक घड़ा रखा था, वह उसमें से गेहूं निकालकर खाने लगा।
तभी उसने सोचा कोई आ गया तो क्या होगा?
यही सोचकर उसने संकरे मुंह वाले घड़े में हाथ डाला और हथेली में गेहूं भर लिए। लेकिन जब उसने हाथ बाहर निकालना चाहा, तो नहीं निकला। वह घड़े के संकरे मुंह में फंस गया था। नटखट बंदर मुट्ठी में भरे गेहूं का लालच भी नहीं छोड़ पा रहा था और न ही वहां से भागने की स्थिति में था।
तभी छत पर कुछ लोग आ गए और बंदर को पकड़कर रस्सी से बांध दिया।
कुछ सयाने बंदरों की निगाह जब उस पर पड़ी तो वे बोले, “अगर इसने हमारी सलाह मान ली होती तो आज यह नौबत न आती।”
वह नटखट बंदर भी अपने लालच पर पछता रहा था कि क्यों नहीं बड़ों की सलाह मानी।।