राजा अंबरीष का दुर्वासा को क्षमा करना : दुर्वासा ऋषि सुदर्शन-चक्र से अपनी जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागते फिरे। सबसे पहले वे ब्रह्मलोक पहुंचे और ब्रह्मा से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। परंतु ब्रह्मा ने उनसे कहा, ”ऋषिवर! मैं सुदर्शन से आपकी रक्षा करने में असमर्थ हूं। आप भगवान शंकर के पास । जाइए। वे ही आपको इससे बचा सकते हैं।”
दुर्वासा ऋषि दौड़े-दौड़े कैलाश पर गए और शिव से अपनी सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। | शिव ने भी असमर्थता प्रकट करते हुए उन्हें विष्णु के पास भेज दिया। विष्णु ने उनसे स्पष्ट कह दिया कि यह सुदर्शन चक्र तो अपने भक्त के वश में है। वही इसे रोक सकता है। दूसरे किसी। देव में उसे रोकने की सामर्थ्य नहीं है। आप अंबरीष के पास ही जाएं।
दुर्वासा तीनों लोकों से निराश होकर भागे-भागे अंबरीष के पास आए और बोले, “राजन! | मुझे क्षमा करो। इस सुदर्शन-चक्र से मेरी रक्षा करो। मुझे आप पर इस तरह क्रोधित नहीं होना चाहिए था। मैं अपने अपशब्दों को वापस लेता हूं।”
राजा अंबरीष ने दुर्वासा ऋषि को अभय-दान दे दिया और सुदर्शन चक्र को वापस जाने के लिए निवेदन किया। सुदर्शन तत्काल लुप्त हो गया। तब राजा ने प्रेम से दुर्वासा को भोजन कराया और स्वयं भी एकादशी व्रत का पारण किया।
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