भस्मासुर से शिव की रक्षा : भगवान शंकर बड़े भोले हैं। इसीलिए भोलेनाथ कहलाते हैं। एक बार उन्होंने राक्षसराज भस्मासुर को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दे दिया कि वह जिसके सिर पर भी अपना हाथ रख देगा, वह भस्म हो जाएगा।
वरदान पाकर भस्मासुर पागल हो गया। जिसने उसे वरदान दिया था, वह उसी के सिर पर हाथ रखकर यह देख लेना चाहता था कि वरदान में कोई शक्ति है भी या नहीं।
शिव ने उसे अपनी ओर आते देखा और उसका इरादा समझा तो वे अपनी रक्षा के लिए भाग खड़े हुए। भागे-भागे वे विष्णु के पास पहुंचे और सारी बात बताई। भगवान विष्णु ने शिव को आश्वस्त किया। वे बड़े मायावी और छलिया थे। साम, दाम, दण्ड, भेद नीतियों से कार्य सिद्ध करने में वे पूरी तरह सिद्धहस्त थे।
जैसे ही भस्मासुर राक्षस शिवजी का पीछा करते हुए वहां आया, विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया और नृत्य करते हुए अपने हाव-भाव से राक्षस को रिझाने लगे। राक्षस उन्हें देखकर मस्त होकर स्वयं भी नाचने लगा तभी विष्णु ने अपना एक हाथ अपने सिर पर रखकर नृत्य की एक मुद्रा बनाई तो भस्मासुर ने भी वैसा ही किया। सिर पर हाथ जाते ही भस्मासुर जलकर राख हो गया।
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