Nakal Ke Liye Bhi Akal Chahiye (Bevkuf Bandar) | नक़ल के लिए भी अकल चाहिए (बेवकूफ बन्दर)

Nakal Ke Liye Bhi Akal Chahiye (Bevkuf Bandar) | नक़ल के लिए भी अकल चाहिए (बेवकूफ बन्दर)

Nakal Ke Liye Bhi Akal Chahiye (Bevkuf Bandar) | नक़ल के लिए भी अकल चाहिए (बेवकूफ बन्दर) : नदी किनारे लगे एक पेड़ की ऊंची शाख पर एक बंदर बैठा था। तभी वहां एक मछुआरा आया और उसने जोर से घुमाकर नदी में जाल डाल दिया। बंदर सब कुछ बड़े ध्यान से देख रहा था। कुछ देर बाद मछुआरे ने जाल निकालकर किनारे पर रखा और खाना खाने चला गया।
मछुआरे को चला गया जानकर बंदर पेड़ से उतरकर जाल के पास आ खड़ा हुआ। फिर उसने ठीक उसी तरह से नदी में जाल डालने की कोशिश की, जैसे मछुआरे ने डाला था। लेकिन यह क्या!…जाल तो नदी में गिरने के बजाय खुद बंदर पर ही आ गिरा था। बंदर बेचारा जाल में फंस गया, वह जितना ज्यादा कोशिश करता जाल से निकलने की, उतना ही और उलझता जाता।
अब बंदर को अपनी गलती का पता चला कि नकल करने के चक्कर में वह क्या कर – बैठा। किसी ने ठीक ही कहा है कि नकल करने के लिए भी अक्ल चाहिए।

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