इंग्लैंड के नए माहौल में : चौबीस दिन की यात्रा के बाद 28 सितंबर, 1888 को गांधी जी इंग्लैंड की धरती पर उतरे। सबसे पहले वे डॉक्टर प्राण जीवन मेहता से मिले। उन्होंने उनके रहने की व्यवस्था अपने एक अंग्रेज मित्र के यहां ‘पेइंग गेस्ट’ के रूप में करा दी। वहां उन्हें लगा कि इंग्लैंड में मांस खाना जरूरी है। जब उस अंग्रेज को गांधी जी ने अपनी प्रतिज्ञा की बात बताई तो वह बोला, “अनपढ़ माता के सामने किए गए प्रण का कोई महत्व नहीं है।”
गांधी जी ने उससे कहा, ‘मुझे स्वदेश लौट जाना स्वीकार है, किंतु मैं अपनी मां को धोखा नहीं दे सकता। मांस का सेवन मैं कदापि नहीं करूंगा।”
गांधी जी की दृढ़ता और मातृ-भक्ति को देखकर वह अंग्रेज बेहद प्रभावित हुआ। फिर उसने कभी भी उनसे मांस खाने का आग्रह नहीं किया।
धीरे-धीरे गांधीजी ने अपने खाने की समस्या का हल खोज लिया। उन्होंने एक अलग कमरा लेकर स्वयं ही खाना बनाना प्रारंभ कर दिया और 6 नवंबर, 1888 को बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए ‘इण्टर टेंपल’ में अपना नाम लिखवा दिया। धीरे-धीरे अंग्रेजी न बोल पाने की उनकी झिझक भी दूर होती चली गई।