गांधी जी विलायत की ओर : गांधी जी विलायत जाकर डॉक्टर बनना चाहते थे। परंतु जब गांधी जी के पिता के मित्र श्री भाव जी ने समझाया कि दीवान का पैतृक पद बिना विलायत जाए और बैरिस्टर बने बिना नहीं मिलेगा तो वे तैयार हो गए। परंतु उनके जाने में दो अड़चनें थीं। एक पैसे की और दूसरी मां की
आज्ञा की। लेकिन भाई की कृपा से दोनों समस्याएं हल हो गईं। मां को उन्होंने वचन दिया कि वे मांस-मदिरा का सेवन नहीं करेंगे।
गांधी जी 4 सितंबर, 1888 को क्लाइड नामक समुद्री जहाज से विलायत के लिए रवाना हुए। उस जहाज पर दो ही भारतीय थे-एक गांधी जी और दूसरे त्रयंबक राय मजूमदार। गांधी जी उन्हीं के साथ रहे। क्योंकि वे अंग्रेजों की भांति फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल पाते थे, छुरी-कांटे से खाना भी उन्हें नहीं आता था, इसलिए वे अपने केबिन में ही खाना मंगवाकर खाते थे। | डेक पर एक दिन मजूमदार ने उनसे कहा, ”मोहनदास ! घर का यह झेंपूपन छोड़ो। अंग्रेजी बोलने का प्रयास करो। बोलने से कमियां स्वयं ही दूर हो जाएंगी।”
तुम ठीक कहते हो। मैं प्रयास करूंगा।” गांधी जी ने वादा किया।