अपराध की स्वीकारोक्ति : धीरे-धीरे मोहनदास को सिगरेट पीने और मांस खाने का चस्का लग गया। घर में वे झूठ बोलने लगे और कभी-कभी पत्नी से भी खाना न खाने की बात पर झगड़ा होने लगा। पैसों की बहुत तंगी थी। एक दिन तो उन्होंने नौकर की जेब से भी पैसे चुराए और अपने मित्र को दिए। | लेकिन उस रात गांधी जी को रात भर नींद नहीं आई। वे मन ही मन पश्चाताप में जलते रहे। सुबह होने पर वे अपनी मां के सामने पहुंचे और अपने सारे अपराध स्वीकार करते हुए कहा, ”मां ! इस जघन्य पाप के लिए तुम मुझे जो भी सजा दोगी, उसे मैं सहर्ष स्वीकार करूंगा। आज से सौगंध खाकर निश्चय करता हूं कि फिर कभी जीवन में मैं ऐसा नहीं करूंगा-न मांस खाऊंगा, न सिगरेट पीऊंगा, न चोरी करूंगा और न कभी झूठ बोलूंगा।”
| सच्चे मन से सत्य की स्वीकृति को सुनकर माता के अश्रु बहने लगे। उन्होंने आगे बढ़कर मोहनदास | को अपने हृदय से लगा लिया। उस दिन मोहनदास भी जी भरकर रोए। मां ने क्षमा कर दिया।