द्रोण शिष्यों का द्रुपद से सामना : हस्तिनापुर के राजकुमारों की सेना और पांचालराज द्रुपद की सेना आमने-सामने थी। दोनों ओर से तीव्र वेग के साथ घात-प्रतिघात हो रहे थे, किंतु हस्तिनापुर के राजकुमार इस युद्ध को अधिक लम्बा नहीं खींचना चाहते थे। उनका उद्देश्य पांचालराज द्रुपद को बंदी बनाना मात्र था। वे सैनिकों और आम नागरिकों का खून नहीं बहाना चाहते थे।
महाबली भीम, युधिष्ठिर और अन्य राजकुमारों ने मिलकर द्रुपद की सेना में भगदड़ मचा दी। दूसरी ओर अर्जुन के तीक्ष्ण बाणों ने पांचालराज द्रुपद के सामने खड़ी सैनिकों की पंक्ति को धराशायी करना आरम्भ कर दिया। देखते-ही-देखते अर्जुन और पांचालराज के बीच एक भी सैनिक न रहा। दोनों एकदूसरे पर तीक्ष्ण बाणों का आघात-प्रतिघात करने लगे।
धनुर्धर अर्जुन ने द्रुपद का धनुष, रक्षा कवच और मुकुट काट डाला। इसके बाद उसका रथ भी छिन्न-भिन्न कर दिया। अब द्रुपद अर्जुन के सम्मुख निहत्थे खड़े थे। अर्जुन के आदेश पर सैनिकों ने द्रुपद को बंदी बना लिया। किसी में इतना साहस न था कि कोई द्रुपद को छुड़ा सके।
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