द्रोण को धनुर्विद्या का दान : “वत्स द्रोण!” महर्षि परशुराम गंभीरता से बोले, ‘जिस उद्देश्य से तुम मेरे पास आए हो, उसे अब मैं पूर्ण नहीं कर पाऊंगा।”
“मैं आपका तात्पर्य नहीं समझा महर्षि!”द्रोण निराशा से बोले।
“वत्स! तुमने आने में बहुत विलंब कर दिया। मैं अपनी समस्त धन-सम्पत्ति दान कर चुका हूं। इस समय मेरे पास धनुष-बाण के अलावा और कुछ भी नहीं है-अपने इस शरीर के अलावा,” महर्षि दयार्दै होते हुए बोले, “यदि तुम्हें यह धनुष-बाण चाहिए तो ले लो।”
* भगवन् ! मुझे आपसे जो कुछ भी प्राप्त होगा, मैं उसे प्रसाद स्वरूप स्वीकार करूंगा।”
“तब ठीक है, मैं तुम्हें यह धनुष-बाण और अपनी समस्त धनुर्विद्या प्रदान करता हूं,’ कहकर महर्षि परशुराम ने अपना धनुष-बाण द्रोण की ओर बढ़ा दिया, जिसे लेकर द्रोण ने सम्मान के साथ अपने मस्तक से लगाया। | इसके बाद महर्षि परशुराम ने द्रोण को धनुर्विद्या की एक-एक कला, दिव्य मंत्र, प्रयोग और नियंत्रण करने का कौशल प्रदान किया। धनुर्विद्या में पारंगत होकर द्रोण ने महर्षि परशुराम से विदा ली।
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