द्रोण की महर्षि परशुराम से भेंट : आचार्य अग्निवेश के आश्रम में शिक्षण कार्य पूर्ण करने के पश्चात द्रोण ब्राह्म-कर्म (अध्यापन) करते हुए जीवन व्यतीत करने लगे। उनका जीवन बड़ी निर्धनता और अभावों के बीच बीत रहा था। पगपग पर उन्हें धन के अभाव में घोर संकटों का सामना करना पड़ता था।
| एक दिन द्रोण ने किसी से सुना कि महर्षि परशुराम अपना धन ब्राह्मणों, निर्धनों और असहायों में बांट रहे हैं। अपनी निर्धनता से दुखी होकर द्रोण महर्षि परशुराम के पास पहुंचे। | द्रोण ने करबद्ध होकर महर्षि परशुराम के सम्मुख शीश झुकाया तो महर्षि ने द्रोण के अभिवादन का उत्तर दिया, फिर द्रोण ने उन्हें अपना परिचय दिया।
‘वत्स द्रोण!” महर्षि बोले, ”कहो, कैसे आगमन हुआ?”
‘महर्षि ! मैंने सुना था कि आप ब्राह्मणों और निर्धनों में धन वितरित कर रहे हैं, ” द्रोण गंभीरता से बोले, ”इसलिए मैं चला आया।”
“ओह!” द्रोण की बात सुनकर महर्षि गंभीर हो उठे।
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