द्रोण और द्रुपद की मित्रता : आश्रम में विद्याध्ययन करते समय द्रोण का व्यवहार अपने सहपाठी विद्यार्थियों के प्रति प्रायः मित्रवत ही रहता था, किंतु उनकी पांचाल राज्य के राजकुमार द्रुपद से विशेष मित्रता थी।
राजकुमार द्रुपद पांचाल के राजा वृष के पुत्र थे। उनका व्यवहार भी द्रोण के प्रति अनुरागपूर्ण था। द्रोण एक मेधावी और प्रतिभावान विद्यार्थी थे।स्वाध्याय करने के बाद राजकुमार द्रुपद को भी उनका पाठ वे प्रायः याद कराते थे। दोनों का एक-दूसरे के प्रति गहरा अनुराग था। लगता था मानो दो शरीरों में एक आत्मा निवास करती हो। एक बार राजकुमार द्रुपद ने द्रोण से पूछा, “मित्र द्रोण !विद्याध्ययन के पश्चात तुम क्या करोगे?”
कहीं आश्रम खोलकर विद्यादान की इच्छा है…और तुम?”द्रोण ने भी प्रश्न किया। “मुझे तो पिताश्री के साथ राज-काज की व्यवस्था देखनी है,” फिर कुछ विचारकर द्रुपद बोले, “मित्र! जीवन के किसी मोड़ पर यदि तुम्हें मेरी आवश्यकता पड़े तो निस्संकोच मेरे पास चले आना।”
“ठीक है मित्र!” द्रोण ने सिर हिलाया।
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