सप्तऋषियों की शरण में डाकू रत्नाकर : डाकू रत्नाकर वापस सप्तऋषियों के पास आया और अपने शस्त्र फेंककर उनके चरणों में गिर पड़ा। आंखों में
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डाकू की साधना और वाल्मीकि नाम पड़ना : डाकू रत्नाकर ने सप्तऋषियों के बताए अनुसार माता सरस्वती का आह्वान किया और पद्मासन लगाकर ‘मरा मरा’
देवर्षि नारद द्वारा वाल्मीकि ऋषि को उपेदश देना : वाल्मीकि ऋषि ने स्नान-ध्यान किया और देवर्षि नारद ने उन्हें केसरिया अंग वस्त्र प्रदान किए। केशों
अहंकारी राजकुमारी विद्योत्तमा : उज्जैन की राजकुमारी विद्योत्तमा को अपने ज्ञान पर बड़ा अहंकार था। उसने घोषणा कर रखी थी कि जो भी व्यक्ति उसे
बड़ा वही है, जिस पर मां सरस्वती की कृपा है : शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। राजकुमारी ने अपने हाथ की एक उंगली को कालिदास की ओर
राजा की शंका का समाधान : महल में पहुंचकर महाराज ने पूछा, “पुत्री ! तुमने क्या प्रश्न किए और उसने क्या उत्तर दिए ?” राजकुमारी
कालिदास की साधना : खूब धूम-धाम से कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह हो गया। पहले ही दिन कालिदास की मूर्खता का पता राजकुमारी विद्योत्तमा को
कालिदास की वापसी : मां सरस्वती की अपार कृपा से सराबोर हो कालिदास वापस विद्योत्तमा से मिलने आए। वे विद्योत्तमा के प्रति कृतज्ञ थे। क्योंकि
नवरत्नों में एक विशिष्ट रत्न : फिर विद्योत्तमा के पास कालिदास रहे या नहीं इसका पूर्ण विवरण तो ग्रंथों में नहीं मिलता। लेकिन विद्वानों द्वारा
मां सरस्वती से क्षमा याचना : एक कथा के अनुसार एक बार महाकवि दंडी को राजकवि घोषित किया गया। इसमें मां सरस्वती की साक्षात स्वीकृति
धन्ना भक्त की कथा : उपासना की नींव है ‘ श्रद्धा’ । जहां श्रद्धा होती है, वहीं सिद्धि होती है। निरंतर साधना से सिद्धि प्राप्त
भोला धन्ना और धूर्त ब्राह्मण : ब्राह्मण की बात सुनकर भोला-भाला धन्ना सकपका गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।
दुष्ट ब्राह्मण और धन्ना की जिज्ञासा : ब्राह्मण ने धन्ना से कहा, ” धन्ना ! देवी सरस्वती ज्ञान-विज्ञान को देने वाली देवी हैं। उन्हीं की
देवी सरस्वती और धन्ना भक्त : ब्राह्मण द्वारा दुत्कारे जाने पर धन्ना ने अपने खेत की मिट्टी से देवी सरस्वती की मूर्ति बनाई और प्रार्थना
धन्ना को लोगों की प्रताड़ना : सरस्वती का वरदान प्राप्त करके धन्ना ने मिट्टी से विष्णु की मूर्ति बनाई और उसे अपने खेतों में स्थापित