द्रोण और द्रुपद का मैत्री-वैर : “द्रुपद! आज तुम मेरे बंदी हो। सम्पूर्ण पांचाल राज्य पर तुम्हारा नहीं मेरा अधिकार है,” द्रोणाचार्य ने व्यंग्यभरे स्वर
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द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय : पांचालराज द्रुपद को उनका राज्य लौटाकर द्रोणाचार्य समझ रहे थे कि उन्होंने वैर का अंत कर दिया, किंतु यह
द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा : पांचालराज द्रुपद ने अपने हितैषियों की सलाह को यथेष्ट सम्मान दिया और पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन की तैयारी
द्रुपद की याज से विनती : उपयाज की बात सुनकर द्रुपद को जहां गहरी निराशा हुई, वहीं यह जानकर प्रसन्नता भी हुई कि उनके ज्येष्ठ
धृष्टद्युम्न का जन्म : याज्ञिक याज के मंत्रोच्चारण के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ आरम्भ हुआ। ज्यों-ज्यों मंत्रोच्चारण के साथ हवनकुंड में आहुतियां डाली जाने लगीं, यजमान
महाभारत का युद्ध : हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के पुत्र-मोह और ज्येष्ठ कौरव युवराज दुर्योधन की अनीति का परिणाम महाभारत के युद्ध के रूप में सामने
कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य : पितामह भीष्म के नेतृत्व में दस दिन तक भीषण युद्ध चलता रहा। पांडवों के अनेक वीरों और उनकी सेना की
द्रोणाचार्य का चक्रव्यूह : आखिर एक दिन खीझ कर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन को विश्वास दिलाया, “आज कुरुक्षेत्र में जैसा रण होगा वैसा फिर कभी न
जीवन का अवसान : द्रोणाचार्य के प्रलयंकारी युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण ने पांडवों को समझाया कि द्रोणाचार्य के | जीवन का अंत उनसे प्रत्यक्ष
महात्मा गांधी का परिवार : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गुजरात में यह प्रथा है कि पुत्र के । नाम
गांधी जी का बचपन : मोहनदास गांधी का बचपन पोरबंदर में ही बीता। सात वर्ष की उम्र में उन्हें राजकोट की एक पाठशाला में भरती
पुस्तक और नाटक का प्रभाव : बचपन में मोहनदास को पढ़ने-लिखने में कोई विशेष रुचि नहीं थी। परंतु एक बार उन्हें कहीं से ‘श्रवण पितृ-भक्ति’
मोहनदास गांधी का विवाह : मोहनदास गांधी अभी मैट्रिक में आए भी नहीं थे कि बारह-तेरह वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह कस्तूरबा से
मोहनदास गांधी की पिटाई : मोहनदास गांधी खेल-कूद में बिलकुल भाग नहीं लेते थे। उनका कहना था कि शिक्षा का खेलसे कोई संबंध नहीं है।
पिता का देहावसान : उन दिनों मैट्रिक की परीक्षा का निकटतम केंद्र अहमदाबाद था। गांधी जी राजकोट से मैट्रिक की परीक्षा देने अहमदाबाद गए थे।