द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा : पांचालराज द्रुपद ने अपने हितैषियों की सलाह को यथेष्ट सम्मान दिया और पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन की तैयारी करने की आज्ञा दे दी। द्रुपद पुत्रेष्टि यज्ञ कराने वाले विद्वान ब्राह्मणों की खोज में जुट गए। वे कभी यमुना-तट पर तो कभी गंगा-तट पर घूमने लगे।
दैवयोग से द्रुपद को यमुना-तट पर आश्रम बनाकर रहने वाले दो विद्वान ब्राह्मण बंधुओं के बारे में पता चला। इन ब्राह्मण बंधुओं में से एक का नाम याज था और दूसरे का उपयाज। याज बड़ा भाई था और उपयाज छोटा।ये दोनों भाई यमुना-तट पर अलग-अलग आश्रम बनाकर रहते थे।
द्रुपद पहले छोटे भाई उपयाज के आश्रम में गए और कुछ समय तक ब्राह्मण देव की भली प्रकार सेवा की। जब ब्राह्मण उपयाज द्रुपद की सेवा-निष्ठा से प्रसन्न हो गए तो द्रुपद ने उनके सामने अपना प्रयोजन प्रकट किया, “ब्राह्मण देव! मैं पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की कामना से आपके समक्ष उपस्थित हूं। यदि आप यह सफलतापूर्वक पूर्ण करा देंगे तो मैं आश्रम के लिए एक करोड़ गाएं दूंगा।”
उपयाज ने स्पष्ट रूप से अपना पक्ष रखा, “पांचाल नरेश ! मैं पुत्रेष्टि यज्ञ नहीं करा सकता, हां! मेरे बड़े भ्राता याज अवश्य इस कार्य को संपन्न करा सकते हैं।”