पुस्तक और नाटक का प्रभाव : बचपन में मोहनदास को पढ़ने-लिखने में कोई विशेष रुचि नहीं थी। परंतु एक बार उन्हें कहीं से ‘श्रवण पितृ-भक्ति’ नाटक की पुस्तक हाथ लग गई। उसे उन्होंने बड़े चाव से पढ़ा। उसे पढ़कर उनके
मन में माता-पिता के प्रति श्रद्धा और सम्मान बढ़ गया। | उन्हीं दिनों उन्होंने ‘सत्यवादी हरिश्चंद्र’ नाटक देखा। उस नाटक को देखकर उनके मन में अनेक
संकटों के बीच भी सत्य पर अटल रहने की भावना पैदा हुई। बचपन में इस पुस्तक और नाटक से उनके मन पर जो प्रभाव पड़ा, वह गांधी जी के जीवन की अंतिम सांस तक बना रहा। उनके सद्विचारों और व्यवहार से उनके शिक्षक उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। यद्यपि वे पढ़ने-लिखने में तेज नहीं थे। स्कूल में
उनकी गणना सामान्य छात्रों में ही होती थी। फिर भी वे कभी अपने अध्यापकों को शिकायत का मौका | नहीं देते थे। अच्छे आचरण के लिए उन्हें कई बार पुरस्कार और छात्रवृत्तियां भी मिली थीं।