द्रोण और द्रुपद का मैत्री-वैर

द्रोण और द्रुपद का मैत्री-वैर : “द्रुपद! आज तुम मेरे बंदी हो। सम्पूर्ण पांचाल राज्य पर तुम्हारा नहीं मेरा अधिकार है,” द्रोणाचार्य ने व्यंग्यभरे स्वर

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द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय

द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय : पांचालराज द्रुपद को उनका राज्य लौटाकर द्रोणाचार्य समझ रहे थे कि उन्होंने वैर का अंत कर दिया, किंतु यह

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द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा

द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा : पांचालराज द्रुपद ने अपने हितैषियों की सलाह को यथेष्ट सम्मान दिया और पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन की तैयारी

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धृष्टद्युम्न का जन्म

धृष्टद्युम्न का जन्म : याज्ञिक याज के मंत्रोच्चारण के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ आरम्भ हुआ। ज्यों-ज्यों मंत्रोच्चारण के साथ हवनकुंड में आहुतियां डाली जाने लगीं, यजमान

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