शिव शंकर की परीक्षा : कैलाश पर्वत पर कुछ देर विश्राम करके भृगु ऋषि ने अपनी उखड़ी हुई सांसों को नियंत्रित किया और उठ खड़े हुए। वे बिना किसी पूर्व सूचना के सीधे भोलेनाथ के शयनकक्ष में जा पहुंचे। उस समय पार्वती शिव की जंघा पर विराजमान थीं और दोनों प्रेम भाव से एक-दूसरे । को देखते हुए निमग्न थे।
भृगु ने वहां भी बिना किसी अभिवादन के शिव से कहा, “वाह भोलेनाथ! आप यहां आनंद से बैठे हैं और पृथ्वी पर हा-हाकार मचा है। आपको किसी की चिंता ही नहीं है।”
अचानक बिना किसी सूचना के भृगु ऋषि को अपने पास एकांत में आया देख और उलाहना सुनकर भोलेनाथ को क्रोध चढ़ आया। वे कुपित होकर उठ खड़े हुए और अपना त्रिशूल उठाकर भृगु की ओर लपके, “शठ ऋषि! तेरा इतना साहस कि तूने मेरी समाधि भंग की। ठहर जा, आज मैं तुझे तेरी इस शठता का मजा चखाता हूं।”
भगवान शिव का रौद्र रूप देखकर भृगु ऋषि के होश उड़ गए। वे सिर पर पैर रखकर भागे। आगे-आगे ऋषि, पीछे-पीछे भगवान।
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