शिव और शंखचूड़ का युद्ध : विष्णु ने भगवान शंकर से देवताओं की सहायता करने का आग्रह किया, तो शंकर ने विष्णु को आश्वासन दिया कि दैत्यराज का वध अवश्य होगा।
शिव ने अपनी एक बड़ी सेना एकत्र की और शंखचूड़ को युद्ध के लिए ललकारते हुए। कहा कि या तो वह देवताओं का राज्य लौटा दे या फिर उनके साथ युद्ध करे। शंखचूड़ ने शिव के साथ युद्ध करना स्वीकार कर लिया। उसने भी अपनी एक विशाल सेना एकत्र की। दोनों ओर से शंख ध्वनि होने लगी और दैत्यों तथा शिवगणों का भयानक युद्ध छिड़ गया। शिव की । ओर से देवगण, गणेश, कार्तिकेय, महाकाली और स्वयं शिव युद्ध कर रहे थे और दैत्यों की ओर से अनेक विकट दैत्य और स्वयं शंखचूड़ उनका जवाब दे रहे थे। | शिव ने शंखचूड़ का वध करने के लिए जैसे ही त्रिशूल का प्रहार किया, तभी आकाशवाणी हुई, “हे महेश्वर ! जब तक शंखचूड़ के पास विष्णु का उत्तम कवच है और इसकी पतिव्रता स्त्री तुलसी का सतीत्व अखण्ड है, तब तक आप चाहकर भी इसका वध नहीं कर सकते। इसलिए आप मर्यादा को न छोड़ें और अपने त्रिशूल को रोक लें।”
आकाशवाणी सुनकर शिव ने अपना त्रिशूल रोक लिया और विष्णु का ध्यान किया।
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