पिता का देहावसान : उन दिनों मैट्रिक की परीक्षा का निकटतम केंद्र अहमदाबाद था। गांधी जी राजकोट से मैट्रिक की परीक्षा देने अहमदाबाद गए थे। मैट्रिक की परीक्षा पास करके जब आगे की पढ़ाई का प्रश्न सामने आया
तो उन्हें भावनगर के कॉलेज में पढ़ने भेज दिया गया। मोहनदास गांधी जब इंटरमीडिएट के पहले वर्ष की . परीक्षा देकर लौटे तो उनके पिता का देहावसान हो गया।
उस अवसर पर उनके पारिवारिक मित्र भाव जी दवे वहां आए। वे उनके पिता के पुराने मित्र और सलाहकार थे। वे अत्यंत कुशल और विद्वान ब्राह्मण थे। उन्होंने गांधी जी के बड़े भाई और उनकी माता को समझाते हुए कहा, “देखो, अब समय बदल गया है। बिना पढ़े-लिखे को कोई नहीं पूछता। अनुभवों
की ओर कोई नहीं देखता। मेरी राय है कि तुम मोहनदास को इसी वर्ष विलायत भेज दो। तीन वर्ष में यह बैरिस्टर बन जाएगा।”
मां ने कहा, “नहीं-नहीं, मैं अपने बेटे को सात समंदर पार, इतनी दूर पढ़ने के लिए। नहीं भेज सकती। मैंने सुना है कि वहां जाकर लड़के बिगड़ जाते हैं, मांस-मदिरा का प्रयोग करने लगते हैं, गोरी मेमों के चक्कर में पड़ जाते हैं।”
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