पंडित ने अपनी गलती मानी : घर लौटकर पंडितजी को नींद नहीं आई। वह चारपाई पर पड़े-पड़े सोचते रहे। यह आदमी पढ़ालिखा नहीं है। विद्वान होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, इसे पूजा-पाठ की विधि भी नहीं आती, फिर भी यह भगवान की भक्ति में ऐसा लीन है कि इसे आस-पास का कोई ज्ञान नहीं है। उसने तो मुंह उठाकर भी हमारी ओर नहीं देखा। वास्तव में यह सच्चा भक्त है। मुझे इससे क्षमा मांगनी चाहिए। रात के अंधेरे में जाकर उससे क्षमा मांग लेता हूं। गांव वालों को कानों-कान खबर नहीं होगी। | ऐसा सोचकर पंडितजी रात्रि के तीसरे प्रहर में धन्ना के खेत पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि जैसे सारा गांव ही धन्ना के चारों ओर सिमट आया है। सभी लोग धन्ना भक्त के सुर में सुर मिलाकर भगवान की स्तुति में भजन गा रहे थे। भक्ति रस का समां बंधा हुआ था। धन्ना के चेहरे के चारों ओर एक अनुपम तेज प्रकट हो रहा था। धन्ना भक्ति में लीन था। पंडितजी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह दौड़कर धन्ना के पैरों में गिर पड़ा।
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