जीवन का अवसान : द्रोणाचार्य के प्रलयंकारी युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण ने पांडवों को समझाया कि द्रोणाचार्य के | जीवन का अंत उनसे प्रत्यक्ष युद्ध में संभव नहीं। किसी योजना से अवश्य उन्हें समाप्त किया जा सकता
है। | श्रीकृष्ण की योजना के अनुसार भीम ने अपनी ही सेना के एक हाथी अश्वत्थामा को मार डाला और द्रोणाचार्य के सम्मुख पहुंचकर जोर-जोर से घोष करने लगा-‘अश्वत्थामा मारा गया…।’
भीम की बात पर एक बार को तो द्रोणाचार्य चौंक पड़े, किंतु फिर अन्यथा प्रलाप समझकर युद्ध करने लगे, किंतु एक पिता के हृदय को चैन न मिला। द्रोणाचार्य ने निकट ही युद्ध कर रहे युधिष्ठिर से पूछा, “युधिष्ठिर ! भीम जो कह रहा है, क्या वह सत्य है?”
‘हां आचार्य !” युधिष्ठिर बोले, ‘अश्वत्थामा मारा गया, किंतु हाथी!”
जब युधिष्ठिर ने ‘किंतु हाथी’ कहा, उसी समय श्रीकृष्ण ने शंखनाद कर दिया, जिससे द्रोणाचार्य को युधिष्ठिर के अंतिम शब्द सुनाई न दिए।
पुत्र शोक में भाव विह्वल हो द्रोणाचार्य शस्त्र त्यागकर रणभूमि में ही समाधि अवस्था में बैठ गए, तभी द्रुपदराज के यज्ञ-पुत्र धृष्टद्युम्न ने अपनी तलवार से उनका शीश काट डाला।
इस प्रकार महर्षि परशुराम के शिष्य और धनुर्विद्या के महान ज्ञाता के जीवन की इति हो गई।
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