द्रोणाचार्य का चक्रव्यूह : आखिर एक दिन खीझ कर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन को विश्वास दिलाया, “आज कुरुक्षेत्र में जैसा रण होगा वैसा फिर कभी न होगा। किंतु दुर्योधन ! अर्जुन को कुरुक्षेत्र से दूर ले जाना होगा। यदि ऐसा हुआ तो
आज ही विजयश्री हाथ लग जाएगी।” | उस दिन द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की और योजना के अनुसार संशप्तकों ने कुरुक्षेत्र से दूर अर्जुन को युद्ध की चुनौती दी। अर्जुन उनसे युद्ध करने चला गया। इधर कुरुक्षेत्र में द्रोणाचार्य के रचे चक्रव्यूह को अर्जुन के अलावा कोई भी पांडव तोड़ना न जानता था, तब माता के गर्भ से चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान सीखकर आए अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का प्रयास किया। वह संभवतः सफल हो भी जाता किंतु उस अकेले योद्धा पर छ: महारथियों-कर्ण, कृपाचार्य, दुर्योधन, कृतवर्मा, अश्वत्थामा और बृहबल ने मिलकर आक्रमण किया।
कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य भी अधर्म नीति से वीर अभिमन्यु को धराशायी होता देखते रहे।
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