जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha

जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : किसी वन में चंडकर्मा नाम का एक राक्षस रहता था। एक दिन वन में उसने एक ब्राह्मण को देखा। राक्षस उसके कधों पर सवार हो गया और कड़ककर ब्राह्मण से बोला-‘चलो, मुझे उस तालाब तक लेकर चलो। मैं वहां स्नान करूंगा।’ भयभीत ब्राह्मण उसे कधों पर ढोकर तालाब की ओर चल पड़ा। रास्ते में चलते हुए ब्राह्मण ने राक्षस के नीचे लटकते पैर देखे तो उसने राक्षस से पूछा-‘भद्र ! आपके पैर इतने कोमल क्यों हैं ?’ राक्षस बोला-‘मैं पानी में भीगे हुए अपने पैर कभी धरती पर नहीं रखता। इसका मैंने व्रत लिया हुआ है।’ तालाब के पास पहुंचकर राक्षस ने कहा-‘अब मैं इस तालाब में नहाने के लिए जा रहा हूं। इसके बाद पूजा करूंगा। जब तक मैं लौटकर न आऊं, तुम यहीं ठहरना|” इतना कहकर राक्षस ब्राह्मण के कधों से उतरकर तालाब में नहाने चला गया। किनारे पर खड़ा हुआ भयभीत ब्राह्मण विचार करने लगा कि स्नान-ध्यान के बाद जब राक्षस लौटेगा तो वह मुझे अपना भोजन समझकर मार डालेगा।

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जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : इसलिए मुझे तुरंत यहां से भाग निकलना चाहिए, क्योंकि पांव गीले होने के कारण राक्षस इस समय मेरा पीछा नहीं कर सकेगा। उसने गीले पांव धरती पर न रखने का व्रत जो लिया हुआ है। यही सोचकर ब्राह्मण वहां से भाग निकला। राक्षस ने भी व्रत लेने के कारण उसका पीछा न किया। इस प्रकार जिज्ञासा करने के कारण ही ब्राह्मण अपने प्राण बचाने में समर्थ हो सका। सेवक से यह प्रसंग सुनने के बाद राजा ने विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और उनसे अपनी त्रिस्तनी कन्या के विषय में पूछा। बहुत सोच-विचार के बाद उन ब्राह्मणों ने राजा को बताया-‘‘हे राजन ! अंगहीन अथवा अधिक अंगों वाली कन्या अपने पति का विनाश करती है और अपने चरित्र को भी कलंकित करती है। यदि तीन स्तन वाली कन्या अपने पिता के समक्ष उपस्थित होती है तो उसके पिता का भी शीघ्र ही विनाश हो जाता है। अत: उचित यही है कि आप इसका दर्शन न करें।

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जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : यदि कोई व्यक्ति इसके साथ विवाह करना चाहता है तो उसके साथ इसका विवाह कर दें और उसको राज्य से बाहर निकाल दें। ऐसा करने से आप सुखी रहेंगे।’ ब्राह्मणों की बात मानकर राजा ने राज्य-भर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई उसकी तीन स्तन वाली कन्या से विवाह करेगा उसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर राज्य से निकाल दिया जाएगा. राजा ने यह ढिंढोरा कई बार पिटवाया, किंतु कोई भी उस कन्या से विवाह करने के लिए प्रस्तुत न हुआ। इस प्रकार वह कन्या युवती बनने लगी। उसको एक गुप्त स्थान पर रखा गया था जिससे कि उसके पिता को उसका दर्शन न होने पाए। उसी नगर में एक अंधा और एक कुबड़ा रहते थे। दोनों में परस्पर मित्रता थी। कुबड़ा अंधे की लाठी पकड़कर भिक्षाटन के लिए चला करता था। उन दोनों ने भी उस घोषणा को सुना था। एक दिन उन्होंने विचार किया कि यदि हममें से कोई इस कन्या से विवाह कर ले तो राजकुमारी के रूप में पत्नी तो मिलेगी ही, एक लाख स्वर्ण मुद्राएं भी मिल जाएंगी।

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जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : यह विचार करके एक दिन अंधा राजदरबार में पहुंच गया और राजा से कह दिया कि वह राजकुमारी से विवाह करने को तैयार है। राजा को यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। उसने नदी किनारे एक स्थान तैयार करवाया और वहां अंधे के साथ अपनी कन्या के विवाह की व्यवस्था करवा दी। विवाह के बाद उसने अंधे को एक लाख स्वर्ण मुद्राएं दीं और एक नाव में बिठवाकर अंधे और राजकुमारी के साथ उस कुबड़े को भी दूसरे राज्य में भिजवा दिया। इस प्रकार विदेश में जाकर वे तीनों एक मकान में सुखपूर्वक रहने लगे। अंधा कोई काम धंधा नहीं करता था। वह तो बस दिन-भर घर में लेटा हुआ मौज उड़ाया करता, सारा काम कुबड़ा मंथरक ही किया करता। धीरे-धीरे उस त्रिस्तनी राजकुमारी के कुबड़े मंथरक के साथ अवैध संबंध बन गए। एक दिन त्रिस्तनी ने कुबड़े से कहा-हे प्रिये ! यदि यह अंधा किसी प्रकार मर जाए तो हम दोनों आनंद के साथ रह सकते हैं। तुम कहीं से विष खोजकर ले आओ जिससे इसको विष खिलाकर मैं निश्चिंत हो जाऊं । ” दूसरे दिन विष की खोज में घूमते हुए मंथरक को एक मरा हुआ काला सर्प मिल गया।

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जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : उसको लेकर वह प्रसन्नतापूर्वक घर लौटा और त्रिस्तनी से बोला-‘प्रिये! मैं यह काला सर्प ले आया हूं। इसको काटकर, इसमें मसाले मिलाकर अच्छी तरह बना दो और इसे मछली का मांस बताकर अंधे को खिला दी। इससे वह तत्काल मर जाएगा।’ यह कहकर मंथरक कहीं बाहर चला गया | त्रिस्तनी ने उस सर्प को काटा और उसमें मिर्च-मसाले लगाकर एक हांडी में डालकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। फिर उसने स्नेहपूर्वक उस अंधे से कहा-‘आर्य पुत्र ! आज मैंने आपकी मनपसंद चीज मंगवाई है। आपको मछली के व्यंजन बहुत पसंद हैं न। इसलिए आज मैं मछली बना रही हूं। मैंने इसमें मिर्च-मसाले आदि मिलाकर, हांडी में भरकर चूल्हे पर चढ़ा दिया है। आप एक चमचा लेकर उसे लगातार चलाते रहो जिससे कि वह जल न जाए। तब तक मैं घर के और काम निबटा लेती हूं।’ अंधा खुशी-खुशी तैयार हो गया। मछली का नाम लेते ही उसकी लार टपकने लगी। वह चूल्हे के पास पहुंचा और चमचा हांडी में डालकर उसे चलाने लगा। हांडी में पकते काले सर्प की विषयुक्त भाप उसकी आंखों और नाक के छिद्रों में प्रवेश करने लगी।

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जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : विषयुक्त भाव के कारण उसकी आंखों का मोतियाबिंद गलकर गिरने लगा। भाप अंधे को अच्छी लग रही थी, अत: वह देर तक हांडी के ऊपर मुंह किए उन सुखद क्षणों का आनंद लेता रहा। जब तक हांडी में रखे सर्प के टुकड़े पके, तब तक उसकी आंखों का मोतियाबिंद साफ हो चुका था। अब वह फिर से देखने लगा। उसने हांडी में निगाह डाली तो काले सर्प के टुकड़े उसे स्पष्ट दिखाई दे गए। इससे वह तुरंत समझ गया कि उसकी त्रिस्तनी पली उसकी या कुबड़े मंथरक में से किसी की जान लेने को तत्पर है। यह रहस्य उजागर होते ही उसने निश्चय कर लिया कि वह उन दोनों के सामने अभी अंधा ही बना रहेगा | उस रात कुबड़ा मंथरक घर लौटा तो आते ही त्रिस्तनी के साथ रमण करने लगा।

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जानने की इच्छा | Janne Ki Iccha : अंधे को यह सब सहन करना असह्य हों उठा। क्रोध से फुफकारता हुआ वह उठा और कुबड़े की दोनों टांगें पकड़कर उसे फिरकनी की तरह घुमाना शुरू किया और आश्चर्यचकित खड़ी अपनी दुराचारिणी पत्नी की छाती पर दे मारा। जोर के प्रहार से त्रिस्तनी का तीसरा स्तन उसकी छाती में घुस गया। बलपूर्वक गोल-गोल फिरकनी की भांति घुमाने पर कुबड़े का शरीर भी सीधा हो गया। यह कथा सुनाकर चक्रधारी बोला-मित्र ! इसलिए मैं कहता हूं कि व्यक्ति का भाग्य उसका साथ दे तो बुरे कार्य का भी परिणाम अच्छा ही निकलता है।” इस पर सुवर्णसिद्ध ने कहा-‘‘आपकी बात किसी सीमा तक ठीक ही है, मित्र। किंतु व्यक्ति को हमेशा अपने मन की ही नहीं करनी चाहिए। हितैषी एवं सज्जन पुरुष का परामर्श भी मान लेना चाहिए अन्यथा व्यक्ति की दशा वैसी ही हो जाती है जैसी मारुड पक्षी की हुई थी।’ चक्रधारी ने पूछा-‘मारुड पक्षी का प्रसंग क्या है ?’ सुवर्णसिद्ध ने तब उसे मारुंड पक्षी की कथा सुनाई।

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