भूत का भय | Bhoot Ka Bhay

भूत का भय | Bhoot Ka Bhay : किसी नगर में भद्रसेन नाम का एक राजा राज किया करता था। उसकी एक कन्या थी जो सर्वगुणसंपन्न थी। कन्या का नाम रत्नवती था। एक राक्षस उस कन्या पर मोहित हो गया। वह नित्यप्रति रात्रि में उसके कक्ष में पहुंच जाता, किंतु मंत्र आदि से सुरक्षित रलवती का अपहरण नहीं कर पाता था। जब वह राक्षस अदृश्य रूप में उस कन्या के कक्ष में पहुंचता तो राजकन्या का शरीर कांपने लगता था। इस तरह उसे राक्षस के आने का आभास तो मिल जाता, किंतु उससे बचने का कोई उपाय उसके पास नहीं था। इस तरह अनेक दिन बीत गए। राजकन्या बड़े कष्ट का अनुभव करने लगी। एक दिन उसकी एक सहेली उसके पास आई। उसने सहेली से अपनी मन की व्यथा कही। राजकन्या ने बताया कि विकाल राक्षस उसे हर रात आकर परेशान करता है।

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भूत का भय | Bhoot Ka Bhay : उस समय वह राक्षस भी अदृश्य रूप में वहां उपस्थित था। उसने समझा कि विकाल नाम का कोई राक्षस है जो उसी की भांति राजकन्या पर मोहित होकर उसका अपहरण करना चाहता है, किंतु वह भी उसी की भांति अब तक राजकन्या का अपहरण करने में असफल रहा है। वास्तव में तो विकाल राक्षस कहने का राजकन्या का तात्पर्य केवल भयंकर राक्षस से था । तब उस राक्षस ने सोचा कि अपने उस प्रतिद्वंद्वी राक्षस को देखना चाहिए, जो उसी की तरह राजकन्या को कष्ट पहुंचा रहा है। ऐसा विचार कर वह शाही घुड़साल में घोड़ों के बीच घोड़े का रूप धारण कर छिपकर बैठ गया। संयोगवश उसी रात घुड़साल से घोड़ा चुराने के उद्देश्य से एक चोर शाही घुड़साल में दाखिल हुआ। उसने एक-एक करके सभी घोड़ों पर नजर दौड़ाई और उसको घोड़े के रूप छिपा राक्षस ही उत्तम घोड़ा दिखाई दिया।

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भूत का भय | Bhoot Ka Bhay : चोर उस घोड़े पर सवार हो गया | राक्षस ने जब यह देखा तो उसकी यही महसूस हुआ कि निश्चय ही यही व्यक्ति विकाल राक्षस है। इस समय उसने आदमी का रूप धारण किया हुआ है। इसने मुझे पहचान लिया है। इसलिए यह मुझे मारने के लिए आया है। राक्षस यह सोच ही रहा था कि चोर ने उसके मुंह में लगाम पहना दी। फिर एक जोरदार चाबुक उसकी पीठ पर जड़ दिया। कोड़े की मार पड़ते ही घोड़ा बना राक्षस भाग छूटा। जब वह दूर चला गया तो चोर ने उसे लगाम खींचकर रोकना चाहा, किंतु घोड़ा बना राक्षस इससे और भी तेज भागने लगा। अब तो चोर को भी शंका होने लगी कि लगाम खींचने पर भी जब यह घोड़ा रुक नहीं रहा, और भी तेज दौड़ रहा है तो निश्चय ही यह घोड़े के भेष में कोई राक्षस है। उसको अब अपने प्राण बचाने की चिता होने लगी |

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भूत का भय | Bhoot Ka Bhay : तभी घोड़ा एक बड़े वृक्ष के नीचे गुजरा। चोर को मौका मिल गया। उसने उछलकर वृक्ष की एक मोटी डाली पकड़ ली और उससे लटक गया। उधर घोड़ा बने राक्षस ने भी उसकी पकड़ से छूटकर चैन की सांस ली। उसी वृक्ष पर राक्षस का मित्र एक वानर रहता था। जब उसने भयभीत होकर राक्षस को भागते देखा तो उसे रोकते हुए बोला-‘अरे मित्र ! तुम इस प्रकार डर क्यों रहे हो ? यह तो एक मनुष्य है। चाहो तो इसे मारकर खा जाओ।” वानर की बात सुनकर भागता हुआ राक्षस रुक गया। उधर चोर ने जब देखा कि यह वानर राक्षस को रुकने के लिए कह रहा है तो उसने वानर की नीचे लटकती हुई पूंछ पकड़ ली और लगा उसे चबाने।

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भूत का भय | Bhoot Ka Bhay : वानर ने समझा कि यह मनुष्य तो राक्षस से भी ज्यादा बलवान है, इस कारण वह भयभीत हो गया और सहमकर चुप हो गया। उधर जब राक्षस वृक्ष के निकट पहुंचा तो उसने उस मनुष्य को वानर की पूंछ चबाते और वानर को डर से थर-थर कांपते देखा। यह देखकर उसके होश उड़ गए। वह वहां एक पल भी न रुका। भागता ही चला गया। यह कथा सुनाने के बाद सुवर्णसिद्ध ने चक्रधारी से कहा-‘अब तुम भी यहां रहकर अपने लोभ का फल भोगो। मुझे आज्ञा दो, मैं चलता हूं।’ चक्रधारी बोला-‘मुझे लोभ के कारण नहीं, अपने भाग्य के कारण यह दुख भोगना पड़ रहा है। लेकिन एक अंधे, एक कुबड़े और एक त्रिस्तनी राजकुमारी ने काम तो बुरा किया, फिर भी भाग्य की कृपा से उन तीनों को अच्छा फल प्राप्त हुआ। सुवर्णसिद्ध ने पूछा-‘वह कैसे ?’ चक्रधारी ने तब उसे यह कथा सुनाई।

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