दुविधाग्रस्त द्रोणाचार्य : प्रतियोगिता का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया था। पितामह भीष्म और अन्य सभी राजपरिवारीगण तथा दर्शकगण इस आयोजन में द्रोणाचार्य के शिष्यों का प्रदर्शन देखकर उनकी प्रशंसा कर रहे थे। लेकिन द्रोणाचार्य उद्विग्न थे और वहीं टहल रहे थे। उनके मन में रह-रहकर पांचालराज द्रुपद द्वारा किए गए अपमान की घटना कौंध रही थी। अब उनका जीवन अभावग्रस्त नहीं था। पुत्र अश्वत्थामा भी राजकुमारों की भांति सुस्वादु भोजन तथा मनोवांछित वस्त्र धारण करता था। उनका वास झोंपड़ी के स्थान पर उत्तम भवन में था और उनके योग्यतम शिष्य अस्त्र-शस्त्र चलाने में कुशल थे। यही नहीं, अपने गुरु की आज्ञा का पालन करने में वे किंचित विलंब न करने वाले थे।
इतना विलास-वैभव होते हुए भी द्रोणाचार्य दुविधाग्रस्त थे। वे किसी भी प्रकार से द्रुपद से अपने अपमान का प्रतिकार चाहते थे, किंतु किस प्रकार, वे यह नहीं समझ पा रहे थे।
Go2Win - भारतीय दर्शकों के लिए स्पोर्ट्सबुक और कैसीनो का नया विकल्प आज के दौर…
Ole777 समीक्षा Ole777 एक क्रिप्टो वेबसाइट (crypto gambling website) है जिसे 2009 में लॉन्च किया…
मोटापे से छुटकारा किसे नहीं चाहिए? हर कोई अपने पेट की चर्बी से छुटकारा पाना…
दशहरा पर निबंध | Essay On Dussehra in Hindi Essay On Dussehra in Hindi : हमारे…
दिवाली पर निबंध Hindi Essay On Diwali Diwali Essay in Hindi : हमारा समाज तयोहारों…
VBET एक ऑनलाइन कैसीनो और बैटिंग वेबसाइट है। यह वेबसाइट हाल में ही भारत में लांच…