द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय : पांचालराज द्रुपद को उनका राज्य लौटाकर द्रोणाचार्य समझ रहे थे कि उन्होंने वैर का अंत कर दिया, किंतु यह उनकी भूल थी। वास्तव में इस घटना ने पांचालराज को अत्यधिक उद्वेलित कर दिया था। पांचालराज द्रुपद के मन में द्रोणाचार्य के प्रति घोर घृणा और प्रतिशोध की ज्वाला धधकने लगी। वे किसी भी प्रकार अपने आत्म-सम्मान पर लगी इस ठेस को मिटाना चाहते थे, किंतु वे यह जान गए थे कि धनुर्धर अर्जुन के तीक्ष्ण बाणों का उनके पास कोई विकल्प नहीं है।
यदि द्रुपद प्रत्यक्ष रूप से द्रोणाचार्य अथवा हस्तिनापुर पर आक्रमण करते तो उनकी पराजय निश्चित थी। स्पष्टतः वे इस प्रकार द्रोण से प्रतिशोध न ले सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा करने का निश्चय कर लिया था। इस संबंध में जब द्रुपद ने अपने विशेष सलाहकारों से परामर्श किया तो उन्होंने एक स्वर में उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन के लिए कहा, ताकि उनकी पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूरी हो सके तथा प्राप्त पुत्र उनकी अभिलाषा को भी पूर्ण कर सके।
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