द्रोणाचार्य की एकलव्य से भेंट

द्रोणाचार्य की एकलव्य से भेंट : कुत्ते के मुख में चलाए बाणों के कौशल को देखकर द्रोणाचार्य को अपना वह स्वप्न भंग होता प्रतीत हुआ, जो उन्होंने अर्जुन के लिए देखा था। अपना दिया हुआ आशीर्वाद कि अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होगा,’व्यर्थ होता प्रतीत हो रहा था। | द्रोणाचार्य ने धीरे से कुत्ते के मुख से बाण निकाले और उसे लेकर उसी दिशा में चल पड़े, जिधर से वह आया था। उनके शिष्य भी उनके साथ थे। शीघ्र ही वे उस स्थान पर जा पहुंचे, जहां घने जंगल में एकलव्य बाण चलाने का अभ्यास कर रहा था।
एकलव्य ने द्रोणाचार्य को देखकर अभ्यास रोक दिया और चरण स्पर्श कर अभिवादन किया। “वीर युवक!” द्रोणाचार्य बोले, “कुछ परिचित-से प्रतीत होते हो?”
** भगवन् ! मेरा नाम एकलव्य है। कुछ समय पूर्व मैं आपके पास धनुर्विद्या सिखाने की प्रार्थना लेकर गया था।”
“ओह एकलव्य!” द्रोणाचार्य आश्चर्य से बोले, “किंतु मैंने तो तुम्हें धनुर्विद्या सिखाने में असमर्थता प्रकट की थी, फिर तुमने यह असाधारण कौशल किससे सीखा?”
एकलव्य ने गंभीरता से द्रोणाचार्य के मुख पर दृष्टि जमा दी।

द्रोणाचार्य की एकलव्य से भेंट

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