अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had
अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had : किसी नगर में वीरवर नाम का एक बढ़ई रहता था। उसकी पत्नी का नाम कामदमनी था। कामदमनी एक व्यभिचारिणी स्त्री थी। इस कारण उसकी हर जगह निंदा होती थी । अपनी पत्नी की इतनी निंदा सुनकर एक दिन बढ़ई ने सोचा कि क्यों न उसकी परीक्षा कर लू। यह सोचकर एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा-‘कल प्रात:काल मैं किसी काम से एक गांव में जाऊंगा। वहां मुझे दो-चार दिन भी लग सकते हैं, अतः रास्ते में खाने के लिए मेरे लिए कोई भोज्य-पदार्थ बनाकर रख देना।’ यह सुनकर उसकी पत्नी को बहुत प्रसन्नता हुई। बड़े उत्साह के साथ घर के सारे काम छोड़कर उसने अपने पति के लिए चबैना तैयार कर दिया। अगले दिन बहुत सवेरे बढ़ई घर से आवश्यक काम से बाहर जाने का बहाना बनाकर चला गया। और एक जंगल में जाकर बैठ गया। कामदमनी को समय काटना मुश्किल लगने लगा। दिन-भर वह बेचैन रही और शाम होते ही श्रृंगार करके अपने प्रेमी देवदत्त के यहां जा पहुंची।
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अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had : उसने कहा-‘मेरा पति किसी काम से बाहर गया हुआ है। घर में आज कोई नहीं है। जब सब लोग सो जाएं तो तुम चुपचाप मेरे पास चले आना।’ उसके प्रेमी ने ऐसा ही करने का आश्वासन दिया। रात हुई तो बढ़ई चुपचाप घर लौट आया और एक खिड़की के रास्ते से घर में घुसकर अपनी चारपाई के नीचे छिप गया। कुछ ही देर बाद उसकी पत्नी का प्रेमी भी आकर उस चारपाई पर बैठ गया। उसे देखकर बढ़ई की इच्छा तो हुई कि वह उसी समय उसका गला घोंट दे; किंतु फिर कुछ धैर्य धारण कर आगे की घटनाओं की प्रतीक्षा करने लगा | कुछ ही देर बाद उसकी पत्नी कमरे में आई। उसने कमरे के दरवाजे बंद किए और अपने प्रेमी के पास आकर उसी चारपाई पर बैठ गई जिसके नीचे उसका पति छिपा हुआ था। ऐसा करते हुए अकस्मात उसका एक पांव अपने पति के शरीर से अनायास ही छू गया। वह तुरंत समझ गई कि उसकी परीक्षा करने के लिए ही उसके पति ने यह नाटक रचा है। तभी उसने निश्चय किया कि वह भी अपना ‘त्रिया-चरित्र’ दिखलाएगी। वह इसी प्रकार सोच रही थी कि उसके प्रेमी ने उतावला होकर उसे आलिंगनबद्ध करना चाहा|
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अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had : उसे इस प्रकार अपनी ओर हाथ बढ़ाते देखकर उस कुलटा ने कहा- ठहरिए महानुभाव ! कृपा करके मेरे शरीर का स्पर्श न करें। मैं एक साध्वी और पतिव्रता नारी हूं। यदि आपने मेरा कहना न माना तो मैं इसी क्षण अपने तेज से आपको भस्म कर दूंगी।’ उसका प्रेमी उसकी बात को सुनकर हतप्रभ रह गया। वह बोला – ‘यदि ऐसी ही बात थी तो मुझे बुलाया ही क्यों था ?’ बढ़ई की पत्नी बोली – कारण भी आपको बताती हूं। आज प्रात : काल मैं देवी के दर्शन की गई थी। वहां पहुंचते ही अकस्मात आकाशवाणी हुई कि मैं छ: महीने बाद विधवा हो जाऊंगी। उस आकाशवाणी को सुनकर मेरा तो कलेजा ही दहल गया। मैंने देवी से पूछा-हे देवी ! क्या इस विपति को टाला नहीं जा सकता ? कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पति का जीवन बच जाए और वे सौ साल तक जिएं ? ‘देवी बोली कि उपाय तो है, किंतु वह मेरे ही अधीन है। मैंने कहा – हे देवी ! मैं अपने प्राणों की बलि देकर भी उस उपाय को करने के लिए उद्यत हूं। आप कृपया वह उपाय बताइए। तब देवी ने कहा कि यदि मैं किसी अन्य पुरुष के साथ एक ही शैया पर शयन करूं तो मेरे पति की आई आसन्न मृत्यु उस व्यक्ति में चली जाएगी।
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अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had : इस प्रकार मेरे पति की आयु सौ वर्ष की हो जाएगी।’ यह कहकर उसने अपने प्रेमी को अांख के इशारे द्वारा यह भी संकेत कर दिया कि यह सब झूठ है। उसका प्रेमी यह जानकर निश्चिंत हो गया। फिर दोनों प्रेमालाप में व्यस्त हो गए। चारपाई के नीचे छिपा बढ़ई अपनी पत्नी के वचन सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। चारपाई के नीचे से निकलकर उसने अपनी पत्नी को अपने अंकपाश में भर लिया और प्रसन्नतापूर्वक कहने लगा-तुम तो बहुत ही अच्छी पली हो। दुष्टों के कहने पर मुझे तुम पर संदेह होने लगा था। तुम तो पतिव्रता नारियों में भी सर्वश्रेष्ठ हो।’ अगले दिन सवेरा होने पर उसने अपनी पत्नी की महानता का प्रचार करने के विचार से उसको अपने कधे पर बिठा लिया। फिर उसके प्रेमी से कहने लगा-
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अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had : ‘श्रीमंत ! आप तो मेरे पूर्व जन्म के कर्मफल से ही यहां आए हैं। आइए, इसके साथ ही मैं आपको भी अपने कधे पर बैठाकर अपने परिजनों से मिलवाने के लिए ले चलता हूं।’ इस प्रकार वह मूर्व बढ़ई उन दोनों को अपने कंधों पर बैठाकर ग्राम-ग्राम घूमता अपनी पत्नी की प्रशंसा करने लगा। यह कथा सुनाकर रक्ताक्ष ने कहा-‘देव ! अब हमारा विनाश सुनिश्चित है। जो व्यक्ति अपने हित की बात छोड़कर अहित का परामर्श दिया करते हैं, ऐसे मित्र को बुद्धिमान लोग शत्रु ही समझते हैं।’ रक्ताक्ष के परामर्श को किसी ने स्वीकार न किया। वे सब स्थिरजीवी को उठाकर अपने दुर्ग में ले जाने लगे।
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अश्लीलता की हद | Ashlilta Ki Had : उस समय स्थिरजीवी ने कहा-‘देव ! आप मुझे वहां ले जाकर क्या करेंगे ? मेरा तो अब मर जाना ही ठीक है। मैं स्वयं भी चाहता हूं कि मैं अग्नि में प्रविष्ट होकर अपना प्राणांत कर लू। आप मुझे अग्नि प्रदान कर मेरा उद्धार कर दीजिए। ” उसकी बात सुनकर रक्ताक्ष ने कहा-“आप अग्नि में प्रविष्ट क्यों होना चाहते 意?” स्थिरजीवी बोला-‘आप लोगों का पक्ष लेने के कारण मेघवर्ण ने मेरी यह दुर्दशा की है, अत: मैं उससे बदला लेने के लिए उल्लू योनि में जन्म लेना चाहता हूं।’ उसकी बात सुनकर रक्ताक्ष कहने लगा-तुम तो बहुत कुटिल हो। कपटपूर्ण बातें करके अपना कार्य सिद्ध करने में खूब निपुण हो। उल्लू की योनि में जन्म लेकर भी तुम अपनी ही योनि को श्रेष्ठ समझोगे। इस प्रसंग में एक कथा सुनी जाती है कि एक चुहिया ने सूर्य, मेघ, पवन एवं पर्वत को छोड़कर अपने एक स्वजातीय चूहे को ही अपना पति चुना था। जाति का मोह सहज ही नहीं छूट पाता | ‘ रक्ताक्ष की बात सुनकर मंत्रियों ने पूछा-‘वह कैसे ?’ तब रक्ताक्ष ने उन्हें यह कथा सुनाई।
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