विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho

विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho

विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho : एक समय एक चालाक मगरमच्छ किसी तालाब के किनारे रहता था। एक बार वहां से गुजरने वाले एक ब्राह्मण से उसने विनती की कि – ‘हे ब्राह्मण देवता! कृपा करके मुझे भी अपने साथ बनारस ले जाएं, ताकि मरने के पश्चात मुझे भी गंगा का सान्निध्य मिल सके।” बेचारा ब्राह्मण उसकी बातों में आ गया। उसने एक बड़े झोले में मगरमच्छ को बिठाया और काशी में गंगातट तक ले आया।

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विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho : गंगा किनारे उसने ज्यों ही मगरमच्छ को झोले से बाहर निकाला, त्यों ही मगरमच्छ पलटा और ब्राह्मण को खाना चाहा। बेचारा ब्राह्मण गिड़गिड़ाने लगा – ‘मैंने तो तुम्हारी मदद की और बदले में अब तुम ही मुझे खाना चाहते हो?’ मगरमच्छ बोला-‘क्या तुम नहीं जानते? यह प्रकृति का नियम है। हर ताकतवर प्राणी दूसरे पर ही निर्भर रहता है, इसलिए मैं कुछ गलत नहीं कर रहा।’ ‘मैं नहीं मानता, क्यों न हम किन्हीं तीन न्यायाधीशों से यह फैसला कराएं और जो वह कहेंगे मैं मानूगा।’ ब्राह्मण ने कहा। मगरमच्छ ब्राह्मण की बात पर सहमत हो गया। वे दोनों सबसे पहले आम के पेड़ के पास गए। ब्राह्मण ने आम के वृक्ष से कहा – ‘मगरमच्छ और मेरे विवाद में निर्णय आप करें।’ उसने अपनी सारी व्यथा भी कह सुनाई।

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विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho

विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho : वृक्ष भी कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला – ‘मुझ जैसे को अच्छे कार्य के बदले मनुष्यों से निर्दयता ही मिलती है। मनुष्य हमसे फल, छाया लेते हैं और जरूरत पड़ने पर हमें जड़ से काट देते हैं।’ यह सुनकर मगरमच्छ हंसा। पेड़ की बात उसे पसंद आई। अब वे एक बूढ़ी गाय के पास गए। गाय ने भी बड़ी संवेदना के साथ उनकी बात सुनी और फिर कहा – ‘हमें भी मनुष्य कुछ अच्छा परिणाम नहीं देता। वह हमारा दूध लेते हैं और जब हम किसी लायक नहीं रहते, तब वह हमें बाहर छोड़ देते हैं। ऐसे में हम किसी न किसी के शिकार बन ही जाते हैं।’

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विश्वासपात्र बनना सीखो | VishwasPatr Bnna Sikho : यह सुनकर मगरमच्छ फिर खुश हुआ और बोला – ‘मैंने क्या कहा था? है ना?” अब तीसरे न्यायाधीश का फैसला शेष था। संयोग से वह भी जल्दी ही मिल गया। यह थी एक होशियार लोमड़ी। उसने दोनों का पक्ष सुना, तो पर सहानुभूति मगरमच्छ की तरफ ही दिखाई। इससे मगर को लगा कि अब तो मैं जीत ही गया। ब्राह्मण तो मेरा निवाला बनने से नहीं बच सकता। पर अभी निर्णय तो हुआ नहीं था?
अपना निर्णय सुनाने के पहले लोमड़ी न्यायाधीश ने दोनों से कहा – ‘मैं पहले यह देखना चाहती हूं कि तुम दोनों ने एक साथ यात्रा कैसे की?” मगरमच्छ उतावलेपन में बोल उठा – ‘मैं बताता हूं।’ यह कहकर वह ब्राह्मण के झोले में घुस गया। जैसे ही वह झोले में गया लोमड़ी और ब्राह्मण ने जल्दी से झोले का मुंह बंद कर दिया। मगरमच्छ छटपटाता रहा, पर दोनों ने उसे पत्थरों पर पटक – पटक कर मार डाला। चलते – चलते लोमड़ी ने ब्राह्मण से कहा – ‘ऐसे प्राणी जो उपकार न मानें उसे मार देना ही ठीक है।’

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