विष्णु का मोहिनी रूप
विष्णु का मोहिनी रूप : काफी देर तक देव-दानव जब लड़ते-लड़ते थक गए तो भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और धन्वंतरि देव से अमृत-कलश लेकर वे उन दोनों के मध्य इठलाते हुए पहुंच गए। देव और दानवों की ओर देखकर उन्होंने मुस्कराकर कहा, “तुम लोग शांति के साथ अलग-अलग पंक्तियों में बैठ जाओ। मैं तुम सभी को क्रम से अमृत का पान करा दूंगी। यदि इस बीच किसी ने उतावलापन दिखाया तो उसका क्रम कट जाएगा।”
देवगण विष्णु को मोहिनी रूप में पहचान गए, परंतु असुरगण नहीं पहचान पाए। वे उनके भ्रम-जाल में फंस गए। विष्णु ने असुरों की मतवाली और ललचाई दृष्टि को देखा तो वे अपनी मादक अदाओं से उन्हें और भी ज्यादा लुभाने लगे। वे मदिरा-कलश को उनके पास लेकर जाते। उसे उनके मुंह में डालते और घुमाकर वापस ले आते। फिर वे पलटकर अमृत कलश से दूसरी पंक्ति में बैठे किसी देवता को अमृतपान करा देते।
राहु नामक दैत्य विष्णु की इस चालाकी को भांप गया। उसने तत्काल माया से एक देवता | का रूप धारण किया और चुपचाप देवताओं की पंक्ति में जा बैठा।
सूर्य-चंद्र जब तक मोहिनी बने विष्णु को इस बारे में सचेत करते, उन्होंने उसे भी अमृत पिला दिया। विष्णु ने चक्र से राहु का सिर तो काट दिया, लेकिन अमृत पीने की वजह से वह अमर हो चुका था। तब से राहु ने चंद्र-सूर्य से शत्रुता ठान ली।