तप्ति | Tapti

तप्ति | Tapti :  सवर्ण एक राजा थे। एक दिन वह अपने दरबार में बैठे अपने एक मंत्री की बात सुन रहे थे। मंत्री कह रहा था, “महाराज, राज्य में प्रजा आजकल बहुत दु:खी है। अकाल, सूखा तथा प्लेग ने समूचे राज्य को अपनी चपेट में लिया हुआ है। लोग प्रतिदिन मर रहे हैं। और जो जीवित हैं, वे भी मरने की प्रार्थना कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए जीवन असहनीय हो गया है।” दूसरा मंत्री बीच में हस्तक्षेप करते हुए बोला, “महाराज, मेरे पास आपके लिये इससे भी बुरी एक सूचना है। पाँचालों ने हम पर आक्रमण कर दिया है और हमें उनसे युद्ध करना होगा।” राजा सवर्ण तैयार होकर सेना के साथ युद्ध के मैदान में पहुँच गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा पाँचाल के राजा की सेना उनकी सेना से अधिक बड़ी तथा शक्तिशाली है। शीघ्र ही उनके सैनिक एक-एक करके मरने लगे राजा सवर्ण अपनी हिम्मत खो बैठे और उन्होंने पाँचाल के राजा के सामने अपनी हार मान ली। पाँचाल ने उनके राज्य पर अधिकार कर लिया। राजा सवर्ण अपने परिवार आदि के साथ जंगलों में चले गए। जहाँ उन्होंने रहने के लिए एक छोटा-सा किला बनाया।

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तप्ति | Tapti : कुछ समय पश्चात् गुरु वशिष्ठ, राजा सवर्ण के किले में पहुँचे। राजा ने उनका स्वागत् किया और “ बोला, “महर्षि मैं अपना राजपाट हार चुका हूँ. मैं अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने में भी असफल रहा हूँ। कृपया, क्यों न आप मेरे शाही पुजारी बन जाइए और मेरे राज्य को पुनः प्राप्त करने में मेरी सहायता कीजिए।” राजा सवर्ण की इस प्रार्थना को गुरु वशिष्ठ ने स्वीकार कर लिया और वह बोले, “तुम मेरे लिए कृतघ्न मत महसूस करो, अपितु अपने राज्य को पुन: प्राप्त करने के लिए अपने पूर्वजों को विवश करो। पाँचालों को एक बार फिर ललकारो।

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तप्ति | Tapti : मेरी उपस्थिति भी तुम्हारी उतनी सहायता नहीं करेगी, जितनी तुम्हारी स्वयं की हिम्मत व बहादुरी तुम्हारी सहायता करेगी।” “महर्षि, आपकी बातों से मुझे बहुत हिम्मत मिली। मैं जाऊँगा और पाँचालों को ललकारूंगा व उनसे अपना राज्य पुन: प्राप्त करके दिखाऊँगा।” इस प्रकार अपनी पूरी क्षमता के साथ छोटी, परन्तु साहसी सेना के साथ राजा सवर्ण ने पाँचालों पर आक्रमण किया। शीघ्र ही एक भयंकर युद्ध के पश्चात् उसने पाँचालों को हराकर अपना राज्य पुन: हासिल कर लिया। जब राजा सवर्ण, पाँचालों से युद्ध कर रहे थे, तब सूर्य की पुत्री तप्ती उन्हें देख रही थीं। राजा की हिम्मत, वीरता तथा सुन्दरता ने उसका हृदय जीत लिया। वह चाहने लगी कि सवर्ण उनके पति बन जाएँ। उसके पिता सूर्यदेव ने भी अपनी पुत्री के प्रेम की देखा तथा उसकी पसंद की

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तप्ति | Tapti : अत: सूर्य और तप्ती ने यह जानने के लिए कि सवर्ण, तप्ती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे अथवा नहीं, एक योजना बनाई।
एक दिन राजा सवर्ण शिकार के लिए जंगल में गए। जगल में उन्होंने व उनके साथियों ने एक सुन्दर हिरन को देखा और उसका पीछा करने लगे। काफी देर तक हिरन का पीछा करते-करते सवर्ण अपने साथियों से अलग हो गए। वे अपने घोड़े के साथ अकेले थे। वे हिरन को तो नहीं पकड़ पाए पर शीघ्र ही सवर्ण को थकान के कारण भूख व प्यास लगने लगी। कुछ समय बाद उन्हें जंगल में एक तालाब दिखाई दिया। उन्होंने पानी पिया और विश्राम करने लगे। तभी उन्हें वृक्ष के पास एक सुन्दर युवती दिखाई दी। उन्होंने सोचा, ‘अरे, यह कितनी सुन्दर है। उसका चेहरा तो सूर्य के समान चमक रहा है।

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तप्ति | Tapti : इसका शरीर उसके गहनों से भी अधिक चमक रहा है। यहाँ तक कि उसके आस-पास के वृक्ष भी इसकी चमक से और अधिक निखर गए हैं। यह कौन हो सकती है? क्या यह स्वयं साक्षात देवी लक्ष्मी हैं? यह तो देवताओं, मनुष्यों व असुरों में सबसे सर्वश्रेष्ठ है। मुझे पता करना चाहिए कि यह कौन है।” राजा सवर्ण उनके पास गए और बोले, “हे सुन्दरी, तुम कौन हो? मैंने तुम्हारे समान कोई सुन्दरी नहीं देखी। तुम तो चन्द्रमा से भी अधिक आनन्द देने वाली हो मेरा दिल तुम्हारे लिये…।” राजा सवर्ण बोलते रहे और एकाएक सुन्दरी अदृश्य हो गई। उसे खोजते-खोजते वह जंगल में इधर-उधर घूमते रहे। अन्त में अत्याधिक थकान होने पर वह जमीन पर गिर गए। तभी उन्होंने एक मधुर आवाज सुनी, “उठो, वीर राजा! तुम्हारे समान वीर पुरुष को इतनी सरलता से हार नहीं माननी चाहिए.”

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तप्ति | Tapti : राजा सवर्ण ने अपनी आँखे खोली और पुन: उई सुंदरी को देखा. वह उस सुंदरी के सामने घुटने के बल झुक कर बोले, “हे सुंदरी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. कृपया मेरे विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करो। चलो, सभी विवाहों में सबसे श्रेष्ठ गंधर्व विवाह कर लेते हैं।” “हे राजन्, मैं तुमसे इस प्रकार विवाह नहीं कर सकती। मैं अपने पिता की सबसे प्रिय पुत्री हूँ, वह आपको पसंद तो करते हैं, परन्तु फिर भी आपको उनसे आज्ञा लेनी पड़ेगी। इसके लिए आपको तपस्या करनी होगी। मेरे पिता पूरे विश्व को प्रकाशमान करते हैं। वह सूर्य देवता अर्थात् सूर्यदेव हैं? तुम्हें उनको मनाना पड़ेगा। मैं उनकी पुत्री तप्ती हूँ।” इतना कहने के साथ ही तप्ती अदृश्य हो गई। राजा सवर्ण ने बारह दिनों तक तपस्या की। तत्पश्चात् ऋषि वशिष्ठ उसके पास आए और बोले, “राजन् मैं जानता हूँ कि तुम क्या चाहते हो। तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी। यह हमारा आशीवाद है।”

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तप्ति | Tapti : यह कहकर ऋषि वशिष्ठ, अग्निदेवता सूर्यदेव से मिलने गए. उनसे मिलने पर वे बोले, “हे सूर्यदेव! मैं ऋषि वशिष्ठ हूँ. मैं यहाँ राजा सवर्ण की तरफ से विवाह का प्रस्ताव लेकर आया हूँ. वह आपकी​ ​पुत्री​ ​तप्ती​ ​से​ ​विवाह​ ​करना​ ​चाहते​ ​हैं?”​ ​तब​ ​सूर्यदेव बोले,​ ​”जब​ ​सर्वाधिक​ ​उपयुक्त​ ​और​ ​वीर​ ​राजा,​ ​सर्वाधिक उपयुक्त​ ​सुन्दरी​ ​का​ ​हाथ​ ​माँगे,​ ​तो​ ​यह​ ​तो​ ​हम​ ​सबके​ ​लिए​ ​एक अच्छा संयोग होगा.”
ऋषि​ ​वशिष्ठ,​ ​तप्ती​ ​के​ ​साथ​ ​वापस​ ​पृथ्वी​ ​पर​ ​लौट आए।​ ​तब​ ​राजा​ ​सवर्ण और​ ​तप्ती​ ​एक-दूसरे​ ​से​ ​मिले​ ​और​ ​ऋषि​ ​वशिष्ठ​ ​ने​ ​उन​ ​दोनों​ ​को आशिर्वाद​ ​दिया।​ ​कुछ​ ​दिनों​ ​पश्चात्​ ​दोनों​ ​ने​ ​पर्वतों​ ​की​ ​विशाल श्रृंखला​ ​के​ ​बीच​ ​में​ ​महान्​ ​ऋषियों​ ​और​ ​स्वर्ग​ ​के​ ​देवताओं​ ​की उपस्थिति​ ​में​ ​विवाह​ ​किया।​ ​और​ ​जीवन​ ​भर​ ​सुख​ ​से​ ​रहे।

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Hind Patrika

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