Moral Stories in Hindi

सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani

सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani

सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : किसी राज्य में एक जुलाहा और एक सारथी रहा करते थे। दोनों गहरे मित्र थे। जुलाहा कपड़े बनाता और सारथी रथ बनाया करता। वे बचपन से ही साथ-साथ खेलते बड़े हुए थे। अधिकतर उनका समय साथ-साथ ही गुजरता। दोनों का काम अलग था, पर जब कोई छुट्टी या त्योहार आता, तो वे एक साथ मिलकर मनाते।

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : एक बार उनके नगर में एक बड़ा उत्सव मनाया जा रहा था। दोनों मित्र भी इसमें भाग लेने पहुंचे। वह नाच-गाने का आनंद ले रहे थे तभी अचानक भीड़ रास्ता बनाने लगी। वे दोनों उत्सुकता से देखने लगे कि कौन आ रहा है? जुलाहे ने अपनी गर्दन ऊंची की तो देखा कि दूर से ऐश्वर्य हाथी चला आ रहा है। जब हाथी की सवारी पास आई तो उसने ऊपर बैठी राजकुमारी को देखा और चकित रह गया। ‘कितनी सुंदर!’ उसके मुंह से निकला। राजकुमारी सचमुच बहुत सुंदर थी। गौर वर्ण, लंबे काले बाल, चमकीली आँखे किसी को भी चकरा देती थीं। जुलाहे ने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया। उसके मुंह से निकला-‘कितनी सुंदर राजकुमारी है!’ और यह कहकर वह बेहोश हो गया।

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : जुलाहे को एक तरफ ले जाकर सारथी मित्र ने उसके मुंह पर पानी छिड़का कि शायद होश आ जाए, पर कुछ हो नहीं पा रहा था। जैसे-तैसे उसे थोड़ा-बहुत होश आता भी, तो वह फिर राजकुमारी की रट लगाकर बेहोश हो जाता। सारथी ने उसे वैद्य के पास ले जाना ही उचित समझा। वैद्य के उपचार से उसकी तंद्रा टूट गई। उसने जैसे ही आंख खोली, सारथी बोला-‘भगवान का भला हो तुम ठीक हो गए। क्या हो गया था तुम्हें?’ जुलाहे ने अपने मित्र के प्रश्न पर एक ठंडी सांस ली और कहा-‘मित्र! मैं तो तीर से घायल हो गया।’ सारथी ने आश्चर्य से पूछा- तीर से! यह कैसे हो सकता है? वहां मैं तो तुम्हारे पास ही खड़ा था, पर मैंने तो कोई तीर लगते नहीं देखा!” अब जुलाहा बोला-‘मित्र! यह तुम नहीं समझोगे। यह प्रेम का तीर था। जब से मैंने उस राजकुमारी को देखा है, मैं उससे प्रेम कर बैठा हूं और मेरे इस रोग का कोई उपचार भी नहीं है। मुझे मर जाने दो। मैं अपने हृदय में यह दर्द लेकर अब नहीं जी सकता।’ अपने मित्र की इस हालत पर सारथी को दया आ गई। उसने सहायता का निश्चय किया और बोला-‘मैं तुम्हारी ऐसी दशा नहीं देख सकता, मैं तुम्हें राजकुमारी से अवश्य मिलवाऊंगा?’

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : सारथी की बात सुनकर जुलाहा बोला-‘मैं जानता हूं तुम मेरा मन रखने के लिए यह सब कह रहे हो। मुझे प्रसन्न करने के लिए तुम कम से कम झूठ तो मत बोलो !’ यह कहकर वह फिर कहने लगा—’हाय राजकुमारी!’ ‘ओह राजकुमारी !’ सारथी ने उसकी बात सुनी तो कहा-‘तुम ठहरो, मेरे दिमाग में क्या है? देखते जाओ। बस कुछ समय मुझे अपने काम में लगा रहने दो।’ यह कहकर वह काम में लग गया। जल्दी ही उसने लकड़ी का एक गरुड़ पक्षी तैयार किया। यह ठीक वैसे ही था जैसे भगवान विष्णु की सवारी।

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : सारथी ने लकड़ी का गरुड़ जुलाहे के पास ले जा कर कहा – “यह तुम्हे राजकुमारी के महल में ले जाएगा. अब तुम्हे इसे उड़ाना सीखना होगा. वैसे यह बहुत आसान हैं, उसी तरह जैसे रथ चलाना”. गरुड़ को देखकर जुलाहा बोला – “मित्र! पर इससे क्या होगा?’ उसका हृदय अब भी टूटा-सा था। सारथी ने उसे साहस बढ़ाते हुए कहा-‘मैं तुम्हें भगवान विष्णु की तरह तैयार करूंगा और यह गरुड़ तुम्हें राजकुमारी तक ले जाएगा। जब तुम उसके महल के ऊपर उड़ोगे, तो राजकुमारी तुम्हें भगवान विष्णु समझकर स्वागत करेगी!’ यह सुनकर जुलाहा उत्साह से भर गया। उसे मित्र की कलाकारी में अपनी बात बनती दिखने लगी।

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : जुलाहे ने बड़ी जल्दी गरुड़ उड़ाना सीख लिया। सारथी ने उसे विष्णु की तरह तैयार किया। एक हाथ में चक्र, दूसरे में कमल और गले में रत्नों का हार पहने जुलाहा विष्णु के वेश में गरुड़ पर सवार होकर राजकुमारी के महल पहुंच गया। वहां उसने गरुड़ को आंगन में उतारा और स्वयं अंदर कमरे में चला गया। उस समय राजकुमारी सो रही थी। जुलाहे ने उसे छूकर धीरे से जगा दिया। टूटी नींद और झपकती आंखों से राजकुमारी ने अपने सामने भगवान विष्णु बने जुलाहे को देखा, तो आश्चर्यचकित हो गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके समक्ष भगवान विष्णु खड़े हैं। उसने जुलाहे से पूछ ही लिया-‘क्या आप सचमुच भगवान विष्णु हो? कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही?’

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : जुलाहा भगवान विष्णु की तरह मुस्कराया और कहने लगा-‘हां, मैं ही विष्णु हूं। मैं पिछले जन्म में कृष्ण था और तुम मेरी राधा। हम वृंदावन में रहा करते थे। मैं तुमसे मिलने को बहुत बेचैन था, इसलिए यहां आया हूं। हम फिर एक होंगे, क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?’ जुलाहे के कहने का तरीका किसी देवता से कम नहीं था। राजकुमारी उसके झांसे में आ गई। उसने जुलाहे से कहा-‘मुझे आपसे विवाह करने में हार्दिक प्रसन्नता होगी, लेकिन बिना पिता की आज्ञा के यह कैसे हो सकता है?’

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : अब जुलाहा डर गया। उसने सोचा अगर विवाह की बात राजा तक गई, तो हो सकता है, मेरा भेद ही खुल जाए, इसलिए उसने चालाकी से काम लिया और धमकी दी-‘यह कैसे हो सकता है? मुझे सिर्फ तुम देख सकती हो और कोई नहीं।’

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : राजकुमारी फिर हिचकिचाने लगी। जुलाहे ने मौका हाथ से जाता देख कहा-‘अगर तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी, तो मैं तुम्हारे पिता और उसके राज्य को जला डालूगा। क्या तुम चाहोगी। कि तुम्हारी नादानी से पिता को क्षति पहुंचे?’
बेचारी राजकुमारी अब डर गई, उसे ‘हां’ कहनी पड़ी। जुलाहे का सपना सच हो गया। उसने राजकुमारी से विवाह रचाने में देरी नहीं की। अब वह हर रात राजकुमारी के महल में गरुड़ पर सवार होकर आता और सुबह होते ही चला जाता। कई दिन जब ऐसा चला, तो एक रात मैदान में पहरा दे रहे राजा के सिपाहियों को कुछ शंका हुई। उन्होंने छुपकर आवाजें सुनीं, जो राजकुमारी के महल से आ रही थीं। अगले दिन उन्होंने यह बात राजा को बताई।

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : इस जानकारी से चिंतित राजा ने रानी को सारा किस्सा सुनाया। सुनकर रानी भी परेशान हुई। राजा ने कहा-‘मालूम करो सिपाहियों की बात कितनी सच है और अगर यह सच है, तो उस व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है।” रानी तुरंत राजकुमारी के पास गई और उससे सारा मामला जानना चाहा। अब राजकुमारी ने सारा सच उगल दिया कि किस तरह उसने भगवान विष्णु से ब्याह रचाया है। यह जानकर रानी की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची और एक सांस में बताने लगी-‘हमारी पुत्री ने विष्णु भगवान से विवाह किया है और वे ही रात को मिलने आते हैं, क्यों न हम रात को कक्ष के बाहर छुपकर उनके दर्शन कर लें!” राजा को यह बात पसंद आई। उसे बड़ा गर्व हुआ कि भगवान विष्णु उसके दामाद हैं।

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : अर्धरात्रि का समय था। राजा और रानी राजकुमारी के कक्ष के बाहर छिपे भगवान विष्णु के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे, तभी जुलाहे का गरुड़ महल में उतरा। जुलाहा विष्णु वेश में था। हाथ में चक्र लिए उसे देख राजा-रानी अपने को बड़ा कृतार्थ मानने लगे। राजा का दिमाग भी फिरने लगा। उसे ध्यान आया कि जब भगवान विष्णु उसके दामाद हैं, तो फिर उसे दुनिया पर राज करने से कौन रोक सकता है?

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : अगले दिन राजा ने अपनी सेनाएं तैयार कराई और उन्हें आसपास के राज्यों में कब्जा करने भेज दिया। पर यह क्या? उसका सारा दांव ही उलटा गया। सेनाएं जहां-जहां गई, वहां-वहां से परास्त होकर लौट आई। निराश राजा अपनी पुत्री के पास जाकर कहने लगा-‘पुत्री! मेरी सेनाएं हर जगह पराजित हो रही हैं। विष्णु भगवान मेरे दामाद हैं, ऐसे में तो यह और भी शर्म की बात है।’ उस रात जब जुलाहा आया तो राजकुमारी ने उसे अपने पिता का दुख बताया। सुनकर जुलाहा पहले तो सकते में आ गया, फिर उसने समझदारी से काम लेते हुए कहा-‘तुम अपने पिता से चिंता न करने को कहना। उनका काम तो मैं चुटकी बजाते ही कर दूंगा।’

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : जब राजा को यह पता चला तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपने दामाद को मूल्यवान वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि का उपहार भेजा। जुलाहे ने इन सबका आनंद उठाया, पर राजा की कोई मदद नहीं की। करता भी कैसे? दुर्भाग्य से उसके कट्टर शत्रु दूसरे राजा ने आक्रमण कर दिया। इस राजा की इतनी शक्ति नहीं थी कि वह शत्रुओं को रोक पाता। वह दौड़ा-दौड़ा राजकुमारी के पास पहुंचा और कहने लगा-‘शत्रुओं ने अपने राज्य पर आक्रमण कर दिया है। हमारे पास उन्हें रोकने लायक न तो सेना है, न हथियार। अब मैं यह सब तुम्हारे पति भगवान विष्णु पर छोड़ता हूं।’

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani :  रात्रि में राजकुमारी ने चिंतित होकर यह बात जुलाहे को बताई। सुनकर जुलाहा सोचने लगा, यदि यह राज्य शत्रुओं के हाथ लग गया, तो मैं राजकुमारी को भी खो ढूंगा। अब उसे एक चतुराई सूझी कि अगर मैं अपने गरुड़ पर सवार होकर युद्ध के मैदान में पहुंच जाऊं, तो इससे इस राज्य के सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा और शत्रु हतोत्साहित होंगे! इस कार्य में मृत्यु भी संभव है, पर अब कोई चारा भी तो नहीं है? जुलाहे ने सोच-विचार कर राजकुमारी से कहा-‘कल सुबह अपने पिता को कहना कि वह अपनी सारी सेना महल के बाहर इकट्ठी करें। भगवान विष्णु स्वयं उपस्थित होकर उनसे चर्चा करेंगे।”

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सुंदर परन्तु मुर्ख राजकुमारी की कहानी | Sunder Parantu Murkh Rajkumari Ki Kahani : अगले दिन सेना इकट्ठी हो गई। राजा भी प्रतीक्षारत वहां खड़ा था, तभी जुलाहे का गरुड़ आ गया। इससे सेना में बहुत उत्साह बढ़ गया। उधर स्वर्ग में बैठे असली भगवान विष्णु यह दृश्य देखकर अपने गरुड़ से बोले-‘देखो! उस जुलाहे को जो मेरा रूप धारण किए है। मैं उसके मुख पर मृत्यु का भय देख रहा हूं, पर लोगों की दृष्टि में तो वही असली विष्णु है। युद्ध में अगर यह मर गया तो लोग तो हमें ही मरा समझेंगे! फिर वे हमारी उपासना करना भी छोड़ देंगे? हमें उस जुलाहे की मदद करनी होगी।’ यह कहकर असली विष्णु जुलाहे में और असली गरुड़ लकड़ी के गरुड़ में समा गए।
युद्ध भूमि से भगवान विष्णु ने शत्रु सेनाओं को मार-भगाया। जुलाहे को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि यह हुआ क्या? काम खत्म होते ही असली विष्णु और गरुड़ वापस चले गए और नकली विष्णु जुलाहे के रूप में जमीन पर आ गिरा। लोगों ने उसे पहचान लिया-‘अरे! यह तो वही जुलाहा है।’ के समक्ष पेश किया गया। जुलाहे ने अपनी सारी कहानी राजा को सुना डाली। राजा इस बड़ी जीत से गद्गद था। वह बोला-‘मुझे दुख नहीं कि तुम असली विष्णु | हो? मैं अपनी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहूंगा?’ इस तरह जुलाहा राजा का दामाद हुआ और आगे चलकर राजा भी बना।

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