शिव द्वारा विषपान
शिव द्वारा विषपान : भगवान विष्णु ने देव-दानवों की परेशानी समझते हुए स्वयं कालकूट विष का पात्र अपने हाथों में थाम लिया और उसे लेकर वे कैलाश पर्वत पर शिव के पास पहुंचे। शिव की आराधना करके भगवान विष्णु ने कहा, “हे योगीराज ! समस्त पैशाचिक शक्तियां आपके भीतर निवास करती हैं। यह कालकूट विष समस्त भू-मण्डल में आग लगा रहा है। इसकी तीव्रता सभी को जलाकर भस्म कर देगी। एक आप ही हैं, जो इस विश्व को इसकी भयानक ज्वालाओं से बचा सकते हैं। हे प्रभु! आप इसे ग्रहण करें और इस संसार को बचाएं।”
भगवान विष्णु की प्रार्थना सुनकर भगवान आशुतोष शिव ने कालकूट विष का पात्र विष्णु के हाथों से ले लिया और उसे एक ही सांस में पी गए। परंतु उन्होंने उस विष को अपने कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उसे कंठ में ही धारण कर लिया। इससे भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। तभी से भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ महादेव पड़ गया। भगवान आशुतोष | शिव के इस कर्म ने उन्हें लोक रक्षक शिव के रूप में विख्यात कर दिया।