समझदार के स्वार्थ की कथा | Samjhdar Ke Swarth Ki Katha

समझदार के स्वार्थ की कथा | Samjhdar Ke Swarth Ki Katha : वरुणादि पर्वत के समीप एक जंगल में मंदविष नाम का एक बूढ़ा सांप रहता था। एक बार कई दिन तक उसे भोजन न मिला। वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर कोई ऐसा उपाय सोचने लगा जिससे बिना परिश्रम किए ही उसकी आजीविका चलती रहे एकाएक उसे एक उपाय सूझ गया और उसे क्रियान्वित करने के लिए वह समीप के एक मेढकों से भरे सरोवर के पास जा पहुंचा। वहां पहुंच वह बेचैनी से इधर-उधर घूमने लगा। उसे इस प्रकार बेचैनी से घूमते देखकर तालाब के किनारे एक पत्थर पर बैठे मेढक को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-‘मामा ! आज क्या बात है ? शाम हो गई है, किंतु तुम अपने भोजन-पानी की व्यवस्था नहीं कर रहे हो ?’ सांप बड़े दुखी भाव से बोला-‘भद्र ! क्या करूं ? मुझे तो अब भोजन की अभिलाषा ही नहीं रह गई है।’

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समझदार के स्वार्थ की कथा | Samjhdar Ke Swarth Ki Katha : ‘ऐसी क्या बात हो गई मामा कि आपकी भूख ही गायब हो गई ?’ सांप बोला-‘आज बहुत प्रातः ही मैं अपने भोजन की तलाश में निकल पड़ा था। एक बड़े सरोवर के तट पर मैंने एक मेढक को देखा। मैं उसको पकड़ने की सोच ही रहा था कि उसकी दृष्टि मुझ पर पड़ गई। समीप ही कुछ ब्राह्मण स्वाध्याय कर रहे थे, वह उनके मध्य जाकर कहीं छिप गया। मैं भी उसकी खोज में उन ब्राह्मणों के समीप जा पहुंचा। वहां एक ब्राह्मणपुत्र का पैर मेरे शरीर पर पड़ गया। प्रतिक्रियास्वरूप मैंने उसे डंक मार दिया। मेरे जहर के कारण वह ब्राह्मणपुत्र वहीं मर गया। उसके पिता को इसका बड़ा दुख हुआ। उसने मुझे शाप देते हुए कहा-दुष्ट ! तूने मेरे पुत्र को बिना किसी अपराध के काटा है। अपने इस अपराध के कारण तुझे मेढकों का वाहन बनना पड़ेगा। बस तुम लोगों का वाहन बनने के उद्देश्य से ही मैं यहां आ गया हूं।’

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समझदार के स्वार्थ की कथा | Samjhdar Ke Swarth Ki Katha : वह मेढक सर्प की यह बात सुनकर अपने परिजनों के पास पहुंचा और उनको सांप द्वारा बताई हुई बात कह सुनाई। यह सुनकर सभी मेढ़क बहुत खुश हुए। उन्होंने यह वृतांत अपने राजा जलपाद को भी सुनाया। जलपाद को यह सब जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ। तब उसने यही निश्चय किया कि सांप की सवारी का आनंद उठाया जाए। उसने आदेश दिया कि सबसे पहले वही मेढक, जिसके साथ सांप का संवाद हुआ था, उसके पास जाए और उसके कथन की सत्यता की जांच करे। वैसा ही किया गया। सबसे पहले वही मेढ़क जल से बाहर निकला और सांप की पीठ पर चढ़ गया। सर्प ने उसे इधर-उधर घुमाया फिर उसे तालाब के किनारे लाकर छोड़ दिया। इस प्रकार उसने अन्य मेढकों का विश्वास जीत लिया। एक बार मन का भय निकलते ही तालाब के अन्य मेढक भी सांप के प्रति भयरहित हो गए। वे भी सांप की पीठ पर चढ़कर उसकी सवारी का आनंद उठाने लगे। धीरे-धीरे झिझकता हुआ जलपाद भी जल से निकल आया और सर्प की सवारी का आनंद उठाने लगा | मंदविष की कोमल त्वचा का स्पर्श पाकर जलपाद तो बहुत ही प्रसन्न हुआ।

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समझदार के स्वार्थ की कथा | Samjhdar Ke Swarth Ki Katha : इस प्रकार एक दिन निकल गया। दूसरे दिन जब मंदविष अपनी पीठ पर मेढकों को लादकर घुमाने ले चला तो उससे चला नहीं गया। यह देखकर जलपाद ने पूछा-‘भद्र ! क्या बात है, आज आप चल नहीं पा रहे हैं ?’ इस पर मंदविष नामक वह धूर्त सांप बोला-‘हां ? आज मैं भूखा हूं इसलिए मुझे चलने में कठिनाई प्रतीत हो रही है।’ जलपाद बोला-‘अगर ऐसी ही बात है तो आप छोटे-छोटे मेढकों को खाकर अपनी भूख शांत कर लीजिए।’ यह सुनकर सर्प बोला-मेढक महाराज। मेरी इच्छा भी यही थी, किंतु मैं कहने से झिझक रहा था। क्योंकि उस ब्राह्मण ने भी मुझे यही शाप दिया था कि मेरी भूख की तृति आपकी सेवा से पाए पुरस्कार से ही होगी।’ सर्प के मुंह से अपने प्रति ऐसे विनम्र भाव जानकर जलपाद प्रसन्न हो उठा।

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समझदार के स्वार्थ की कथा | Samjhdar Ke Swarth Ki Katha : तब से उसने मंदविष को नित्यप्रति तालाब के छोटे-छोटे मेढ़क खाने की आज्ञा प्रदान कर दी | तब से वह सर्प नित्यप्रति तालाब के मेढकों को खाकर अपना जीवन निर्वाह करने लगा। और बदले में मेढ़कों को अपनी पीठ पर बिठाकर उनकी सैर कराने लगा | एक दिन जब वह मेढकों को अपनी पीठ पर बैठाकर घुमा रहा था तो मार्ग में एक अन्य काला नाग मिल गया। एक नाग को अपनी पीठ पर मेढकों को सवारी कराते देख उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने मंदविष से पूछा-मित्र ! यह मेढक तो हमारे भक्ष्य हैं। तुम यह उल्टी बात कैसे कर रहे हो ?’ इस पर मंदविष बोला-‘यह बात तो मैं भी जानता हूं मित्र, किंतु मैं उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहा हूं। मेरी स्थिति इस समय वैसी ही है, जैसी उस घी से अंधे बने ब्राह्मण की हुई थी।’ दूसरे सर्प ने पूछा-‘वह किस प्रकार ?’ मंदविष बोला-‘सुनाता हूं, सुनो।’

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