‘प्रेमदान’ की स्थापना : जगह की समस्या दूर होते ही मदर ने सारे कलकत्ता में मुनादी करा दी कि जो बच्चा नारियल के बेकार पड़े सौ खोल एकत्र करके मदर होम की गाड़ी को देगा, उसे बिस्कुट और डबलरोटी दी जाएगी। यह खबर पाकर बच्चों में होड़-सी लग गई। वे सड़क के किनारे घूम-घूमकर नारियल के खोल एकत्र करने लगे। संपन्न घराने के लोग नारियल का पानी पीकर उन्हें सड़क पर फेंक देते थे । जब किसी बच्चे के पास सौ खोल एकत्र हो जाते तो वह उनका गट्ठर बना देता था।
सप्ताह में दो बार ‘मदर होम’ की गाड़ी कलकत्ता का चक्कर लगाती और गट्ठरों को एकत्र करती और बच्चों को बिस्कुट और डबलरोटी देती। मदर का यह अभियान पूरी तरह से सफल रहा। उन्होंने आई.सी.आई. द्वारा दी गई जगह में ‘प्रेमदान’ नामक आश्रम का निर्माण कराया और नारियल के खोलों को वहां जमा कराया। इस प्रकार सड़कों की गंदगी साफ हो गई और बच्चों को काम भी मिल गया। इससे उन्होंने भीख मांगना भी बंद कर दिया।
‘प्रेमदान’ आज एक विशाल आश्रम के रूप में परिवर्तित हो चुका है। इस प्रेमदान में बच्चों, बूढ़ों और अपंगों को रहने की जगह दी जाती है। बदले में वे नारियल के खोलों से रस्सी, पायदान, थैले और दरियां आदि बनाकर अपना गुजारा करते हैं।