द्रोण की भाव विह्वलता : कृपी से बालक अश्वत्थामा की बात का कोई उत्तर देते न बना । विवशता के कारण उसकी आंखों से झर-झर
द्रोण की कृपी का परामर्श : द्रोण की कृपी का परामर्श ‘कृपी!” द्रोण विवश भाव से बोले, “कभी-कभी तो इच्छा होती है कि इस अभावग्रस्त
द्रोण की पांचालराज द्रुपद से भेंट : कृपी का परामर्श मानकर वे तुरंत पांचाल राज्य की ओर चल पड़े। राजमहल के द्वार पर पहुंचकर द्रोण
दोण का अपमान : महाराज द्रुपद ने गंभीरता से द्रोण की ओर देखा, “ब्रह्मन् ! अपनी दीन दशा देख रहे हो।’ द्रोण ने द्रुपद की
द्रोण का प्रत्युत्तर : “महाराज द्रुपद!” द्रोण गंभीर स्वर में बोले, “आज से पहले मैं इस बात को केवल सुना करता था कि राजा और
द्रोण हस्तिनापुर की ओर : पांचालराज द्रुपद के तिरस्कार भरे व्यवहार ने द्रोण को उद्वेलित कर दिया था। किसी तरह भी धनजन शक्ति को प्राप्त
द्रोण का चमत्कार : बालक कुएं के चारों ओर से उसमें पड़ी गेंद देख रहे थे। द्रोण ने बालकों का कोलाहल सुना तो उनकी ओर
द्रोण की पितामह भीष्म से भेंट : द्रोण के चमत्कार से गेंद पाकर सभी बालक बड़े प्रसन्न थे। एक बालक धीरे से बोला, “श्रीमन् !
प्रवाल पिष्ठी: परिचय Praval Pishti: प्रवाल, सामान्यतः मूंगा के नाम से जाना जाता है. प्रवाल पिष्ठी का निर्माण इसी प्रवाल के द्वारा होता है. प्रवाल,
द्रोण बने द्रोणाचार्य : द्रोण और पितामह भीष्म के बीच पारस्परिक परिचय और शिष्टाचार के बाद पितामह बोले, ‘विप्रवर!आपने धनुर्विद्या का यह गूढ़ ज्ञान कहां
द्रोणाचार्य द्वारा शिष्यों की परीक्षा : द्रोणाचार्य बड़े प्रेम, लगन और सावधानी से कौरवों तथा पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान करने लगे। सभी राजकुमार
द्रोणाचार्य का प्रिय शिष्य अर्जुन : युधिष्ठिर के बाद द्रोणाचार्य ने एक-एक करके कुरु वंश के सभी राजकुमारों को चिड़िया की आंख का संधान करने
द्रोणाचार्य से एकलव्य की प्रार्थना : एकलव्य एक भील बालक था। धनुर्विद्या में उसकी विशेष रुचि थी। जब उसने सुना कि हस्तिनापुर में द्रोणाचार्य अपने
द्रोणाचार्य का आश्चर्य : एक दिन द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को वन में धनुष-बाण चलाने का अभ्यास कराने ले गए। उनके पीछे ही आश्रम में रहने
द्रोणाचार्य की एकलव्य से भेंट : कुत्ते के मुख में चलाए बाणों के कौशल को देखकर द्रोणाचार्य को अपना वह स्वप्न भंग होता प्रतीत हुआ,