भीत-सी आंखों वाली उस दुर्बल, छोटी और अपने-आप ही सिमटी-सी बालिका पर दृष्टि डाल कर मैंने सामने बैठे सज्जन को, उनका भरा हुआ प्रवेशपत्र लौटाते
![woh chini bhai](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/woh-chini-bhai.jpg)
मुझे चीनियों में पहचान कर स्मरण रखने योग्य विभिन्नता कम मिलती है। कुछ समतल मुख एक ही साँचे में ढले से जान पड़ते हैं और
![sona hirani](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/sona-hirani.jpg)
सोना की आज अचानक स्मृति हो आने का कारण है। मेरे परिचित स्वर्गीय डाक्टर धीरेन्द्र नाथ वसु की पौत्री सस्मिता ने लिखा है : ‘गत
![do phool](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/do-phool.jpg)
फागुन की गुलाबी जाड़े की वह सुनहली संध्या क्या भुलायी जा सकती है ! सवेरे के पुलकपंछी वैतालिक एक लयवती उड़ान में अपने-अपने नीड़ों की
![gillu](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/gillu.jpg)
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा
![rama](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/rama.jpg)
रामा हमारे यहाँ कब आया, यह न मैं बता सकती हूँ और न मेरे भाई-बहिन। बचपन में जिस प्रकार हम बाबूजी की विविधता भरी मेज
![nelu kutta](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/nelu-kutta.jpg)
नीलू की कथा उसकी माँ की कथा से इस प्रकार जुड़ी है कि एक के बिना दूसरी अपूर्ण रह जाती है। उसकी अल्सेशियन माँ उत्तरायण
![gheesa](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/gheesa.jpg)
वर्तमान की कौन-सी अज्ञात प्रेरणा हमारे अतीत की किसी भूली हुई कथा को सम्पूर्ण मार्मिकता के साथ दोहरा जाती है, यह जान लेना सहज होता
![shubhdra](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/shubhdra.jpg)
हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय-प्रवाह का पाट ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन
![parnaam](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/parnaam.jpg)
कार्य और कारण में चाहे जितना सापेक्ष सम्बन्ध हो किन्तु उनमें एकरूपता, नियम का अपवाद ही रहेगी। बिजली की तीखी उजली रेखा में मेघ का
![dagyaa](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/dagyaa.jpg)
मैं गुप्त जी को कब से जानती हूं, इस सीधे से प्रश्न का मुझसे आज तक कोई सीधा-सा उत्तर नहीं बन पड़ा। प्रश्न के साथ
![samaran premchand](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/samaran-premchand.jpg)
प्रेमचंदजी से मेरा प्रथम परिचय पत्र के द्वारा हुआ। तब मैं आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी!। मेरी ‘दीपक’ शीर्षक एक कविता सम्भवत: ‘चांद’ में प्रकाशित
![apni baat atit ke chal chitr](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/apni-baat-atit-ke-chal-chitr.jpg)
समय-समय पर जिन व्यक्तियों से सम्पर्क ने मेरे चिन्तन की दिशा और संवेदन को गति दी है, उनके संस्मरणों का श्रेय जिसे मिलना चाहिए उसके
![apni baat rekha chitr](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/apni-baat-rekha-chitr.jpg)
‘रेखाचित्र’ शब्द चित्रकला से साहित्य में आया है, परन्तु अब वह शब्दचित्र के स्थान में रूढ़ हो गया है। चित्रकार अपने सामने रखी वस्तु या
![do shabad path ke sathi](https://hindpatrika.com/wp-content/uploads/2019/03/do-shabad-path-ke-sathi.jpg)
साहित्यकार की साहित्य-सृष्टि का मूल्यांकन तो अनेक आगत-अनागत युगों में हो सकता है; पर उनके जीवन की कसौटी उसका अपना युग ही रहेगा। पर यह