निर्मल हृदय’ की स्थापना : डॉक्टर अहमद ने मदर को उस धर्मशाला के दो बड़े हॉल दिलवा दिए। मदर ने उस जगह का नाम निर्मल हृदय’ रख दिया और वहां अपना सेवा कार्य प्रारंभ कर दिया। परंतु धर्मशाला के पंडित और वहां बैठकर जुआ खेलने वाले लोगों को यह बात कतई पसंद नहीं आई। उन्होंने कमिश्नर से शिकायत कर दी | और एक दिन उन्हें लेकर वे वहां आ धमके। उन्होंने कमिश्नर से कहा था कि मदर सेवा कार्य के बहाने | वहां ईसाई धर्म का प्रचार कर रही हैं, इससे हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
कमिश्नर ने ‘निर्मल हृदय’ जाकर देखा तो वहां मरणासन्न रोगी कराह रहे थे और मदर तथा अन्य | सिस्टर्स उनकी देख-रेख में लगी थीं। उन मरीजों के शरीर से भयंकर बदबू आ रही थी। पंडित जी ने तत्काल अपनी नाक पर अपनी धोती का पल्ला ढक लिया।
कमिश्नर ने पंडितजी से कहा, “पंडित जी! अगर आपको यह जगह चाहिए तो नाक से कपड़ा | हटाकर इन मरीजों के पास जाइए और इनका हाल-चाल पूछिए।”
कमिश्नर की बात सुनकर पंडित जी शर्मिंदा हो गए। कमिश्नर ने आदेश दिया कि मदर यहां से कहीं नहीं जाएंगी। कोई उनका विरोध करने का साहस न करे। फिर किसी की जुर्रत नहीं हुई कि वह मदर के । सेवा कार्य में कोई अड़चन डाले।
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