मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha

मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha

मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha : किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा प्रकांड विद्वान था। पूर्व जन्म के संस्कारों से वह चोरी किया करता था। एक बार उसने अपने ही नगर में बाहर से आए हुए चार ब्राह्मणों को देखा। चोर ब्राह्मण ने सोचा कि वह ऐसा कौन-सा उपाय करे जिससे उन चारों की सम्पति उसके पास आ जाए। कुछ विचार कर वह उनके समीप गया और उन पर पांडित्य की छाप जमाने लगा। अपनी मीठी वाणी से उसने अपने प्रति उनका विश्वास उत्पन्न कर लिया और इस प्रकार वह उनकी सेवा करने लगा. किसी ने ठीक ही कहा है कि कुलटा स्त्री ही अधिक लज्जा करती है, खारा जल अधिक ठंडा होता है, पाखंडी व्यक्ति अधिक विवेकी होता है और धूर्त व्यक्ति ही अधिक प्रिय बोलता है | एक दिन ब्राह्मणों ने जब अपना सारा सामान बेच दिया तो उससे प्राप्त धन से उन्होंने रत्न आदि खरीद लिए तब उन्होंने अपने देश को प्रस्थान करने का निश्चय किया।

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मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha

 

मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha : उन्होंने अपनी जंघाओं में उन रत्नों को छिपा लिया । यह देख चोर ब्राह्मण को इतने दिनों तक उनकी सेवा में रहकर अपनी असफलता पर खेद होने लगा। तब उसने निश्चय किया कि वह भी उनके साथ जाएगा और मार्ग में सबको विष देकर उनकी संपत्ति हथिया लेगा | चोर ब्राह्मण ने जब रो – धोकर उसे अपने साथ ले चलने का आग्रह किया तो उन ब्राह्मणों ने उसे साथ ले जाना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार जब वे जा रहे थे तो मार्ग में भीलों का एक गांव आया। उस गांव के कौए ऐसे प्रशिक्षित थे, व्यक्ति के पास धन होने का संकेत दे देते थे। उन्होंने संकेत दिया भीलों को संदेह हो गया कि उनके पास संपत्ति है । भीलों ने उनको घेरकर चाहा,

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मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha : किंतु जब ब्राह्मणों ने देने से इंकार किया तो भीलों ने की। पीटकर उनके वस्त्र उतरवाए गए, किंतु उनको धन कहीं चोर ब्राह्मण ने भीलों के मुख से जब यह बात सुनी कि उनको मारा जाएगा तो वह समझ गया कि अन्त में उसकी भी बारी आएगी ही। अत: किसी प्रकार अपने प्राण देकर इनके प्राण बचाए जा सकें तो क्या हानि है ? यही विचार करके उसने भीलों से कहा-‘भीलो। यदि तुम्हारा यही निश्चय है तो पहले मुझे मारकर अपने कौओं के संकेतों का परीक्षण कर ली | ”
भीलों ने उस धूर्त ब्राह्मण को मार डाला। जब उनको उस ब्राह्मण के शरीर में छिपा हुआ धन नहीं मिला तो उन्होंने सोचा कि बाकी चारों ब्राह्मणों के पास भी कुछ नहीं होगा। यह सोचकर भीलों ने उन चारों ब्राह्मणों को छोड़ दिया। यह कथा सुनाकर करटक ने आगे कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा रहता है।’

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मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha : वे दोनों इधर इसी प्रकार की बातें कर रहे थे और उधर पिंगलक और संजीवक में निर्णायक युद्ध चल रहा था। अन्त में पिंगलक ने अपने नख-दंत प्रहार से संजीवक को मार ही डाला। संजीवक को मारने के बाद पिंगलक को उसके गुण याद आने लगे। उसे पश्चाताप होने लगा। वह बोला-‘संजीवक का वध करके मैंने बहुत बड़ा पाप किया है, क्योंकि विश्वासघात से बढ़कर कोई दूसरा पाप नहीं होता। मैं पहले अपनी सभा में सभी से उसकी प्रशंसा किया करता था, अब मैं अपनी सभा में क्या कहा करूंगा ?’ पिंगलक के मुख से दुखपूर्ण बातें सुनकर दमनक उसके पास पहुंचा और बोला-‘स्वामी ! घास खाने वाले बैल का वध करने के बाद आप शोक क्यों मना रहे हैं?

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मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अधिक अच्छा | Murkh Mitr Se Vidhwan Shatru Adhik Accha : यह नीति तो कायरतापूर्ण है। किसी राजा को ऐसी नीति शोभा नहीं देती। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि ‘हे अर्जुन, जिनके विषय में तुझे सोच नहीं करना चाहिए, उनके विषय में सोचकर तू शोकाकुल क्यों हो रहा है ? व्यक्ति को जीवन के तत्व को समझकर उसके अनुकूल ही आचरण करना चाहिए। विद्वान व्यक्ति किसी के जीने अथवा मरने का शोक अथवा हर्ष नहीं किया करते | * दमनक ने आगे कहा-‘स्वामी ! यह बैल तो आपसे द्रोह करता था। चाहे पिता हो भाई, पुत्र हो या पत्नी, यदि वे प्राण लेने का प्रयास करें तो उनका वध करने में भी कोई पाप नहीं लगता | * इस प्रकार दमनक द्वारा बहुविधि समझाने पर पिंगलक ने संजीवक की मृत्यु का शोक करना छोड़ दिया और दमनक को अपना मंत्री बनाकर पहले की तरह से राज्य का संचालन करने लगा |

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