मुर्ख गधा | Murkh Gadha

मुर्ख गधा | Murkh Gadha : किसी वन में करालकेसर नाम का एक सिंह रहता था। धूसरक नाम का एक गीदड़ उसका सेवक था। वह हमेशा सिंह के साथ-साथ ही रहता था और उसके द्वारा छोड़े गए शिकार को खाकर अपना निर्वाह करता था।

एक दिन किसी जंगली हाथी से सिंह की भिड़त हो गई, जिसके कारण उसके शरीर पर अनेक घाव हो गए। सिंह चलने-फिरने से लाचार हो गया और उसके भोजन की समस्या पैदा हो गई। सिंह के साथ-साथ गीदड़ भी भूखा मरने लगा। बहुत दुर्बल हो जाने पर एक दिन उसने सिंह से कहा-‘स्वामी ! भूख से पीड़ित होने के कारण मैं इतना दुर्बल हो गया हूं कि अब एक पग भी नहीं चला जाता। बताइए, आपकी सेवा कैसे करूं ?’ सिंह ने कहा-‘अरे भाई ! जाओ, किसी ऐसे जीव को खोजकर मेरे पास ले आओ, जिसे मैं ऐसी अवस्था में भी मार सकूं।’ गीदड़ ऐसे पशु की खोज करता-करता एक गांव में पहुंच गया। वहां उसने लम्बकर्ण नामक एक गधे को धास चरते देखा। गीदड़ ने उस गधे से कहा-‘मामा, प्रणाम। बहुत दिन बाद दिखाई दिए। आप तो बहुत दुर्बल दिखाई दे रहे हैं।’

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मुर्ख गधा | Murkh Gadha : गधा बोला-‘क्या करूं भाई ? मेरा स्वामी एक धोबी है, जो स्वभाव से बड़ा कठोर है। वह मुझे भरपेट भोजन तो देता नहीं, उलटे मेरी पिटाई ज्यादा करता 意1” गीदड़ ने कहा-‘मामा ! ऐसे कठोर मालिक को छोड़ देना ही अच्छा है। आप मेरे साथ चलिए। यहां से कुछ दूर नदी किनारे एक बहुत अच्छा चरागाह है जहां हमेशा हरी-हरी दूब उगी रहती है। आप वहां चलकर रहिए।’ यह सुनकर गधा बोला-‘परंतु भाई, मैं तो गांव का रहने वाला हूं। वहां जंगली जानवरों के बीच जाकर कैसे रह सकता हूं ? वहां तो मेरी जान को हमेशा खतरा बना रहेगा।’ इस पर गीदड़ ने उत्तर दिया-“ऐसी बात नहीं है मामा। वह जगह बिल्कुल सुरक्षित है। वहां किसी का डर नहीं। वहां तीन गधी भी रहती हैं, जो एक धोबी के अत्याचारों से तंग आकर भाग आई हैं। उनका कोई पति भी नहीं है।

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मुर्ख गधा | Murkh Gadha : आप चाहें तो उनके पति भी बन सकते हैं।” लम्बकर्ण उसकी बात सुनकर लालच में आ गया। गीदड़ जब लम्बकर्ण को लेकर सिंह के पास पहुंचा तो झाड़ी में छिपे सिंह ने उस पर पंजे से प्रहार किया। लेकिन लम्बकर्ण किसी प्रकार बच गया और वहां से भाग आया। गधे के हाथ से निकल जाने पर गीदड़ सिंह पर बहुत नाराज हुआ। वह बोला-तुम सर्वथा निकम्मे हो। जब तुम एक गधे को भी नहीं मार सकते तो हाथी से क्या लड़ोगे ?’ सिंह को बहुत शर्म आई। उसने कहा-‘उस समय मैं पूरी तरह से तैयार नहीं था, इसलिए ऐसा हो गया। अब तुम एक बार फिर कोशिश कर उसे यहां लिवा लाओ । इस बार मेरा वार निष्फल नहीं होगा।’ गीदड़ फिर से गधे के पास पहुंचा और उस लम्बकर्ण नामक गधे से बोला-‘अरे मामा। तुम भाग क्यों आए ? वह तो एक गधी थी जो तुमसे मित्रता बढ़ाने के लिए तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाना चाहती थी । पर तुम तो कायर निकले। प्रेमिका की इतनी-सी बात का बुरा मान गए तो फिर उससे प्रेम कैसे करोगे?

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मुर्ख गधा | Murkh Gadha : जानते हो तुम्हारी इस हरकत से उसे इतना दुख पहुंचा है कि उसने खाना-पीना ही छोड़ दिया है। अब वह तुम्हारे वियोग में बुरी तरह तड़प रही है।’ मूर्ख गधा फिर उसकी बातों में आ गया। वह उसके साथ फिर उसी स्थान पर पहुंच गया। इस बार सिंह ने कोई चूक न की। अपने दो-चार थपेड़ों में ही उसने गधे का काम तमाम कर डाला। फिर वह उसका भक्षण करने से पहले नदी में स्नान करने चला गया । जब तक सिंह स्नान करके लौटा तब तक गीदड़ मृत गधे के कान और उसके हृदय को निकालकर खा चुका था। यह देखकर सिंह बहुत क्रोधित हुआ। उसने गीदड़ से पूछा-‘अरे धूर्त गीदड़ ! तूने इसके कान और हृदय को क्यों खा लिया?” गिड़गिड़ाता हुआ गीदड़ बोला-‘स्वामी ! ऐसा मत सोचिए। मैंने कुछ नहीं खाया है।

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मुर्ख गधा | Murkh Gadha : इस गधे के कान और हृदय तो इसके शरीर में थे ही नहीं। अगर इसके कान और हृदय होते तो एक बार प्रहार के बाद आपके पास दोबारा कैसे चला आता ?? सिंह को गीदड़ की बात पर विश्वास हो गया। फिर दोनों अपने भोजन पर जुट गए और लम्बकर्ण के मृत शरीर को चट कर गए। यह कहानी सुनाने के बाद वानर ने मगर से कहा-‘मूर्ख ! तूने भी मेरे साथ छल किया था, किंतु दंभ के कारण सच्ची बात तेरे मुख से निकल गई और मैंने तत्काल अपनी प्राणरक्षा का उपाय सोच लिया था। दंभ से प्रेरित होकर जो व्यक्ति सच बोलता है वह उसी तरह पदच्युत हो जाता है जैसे युधिष्ठिर नाम के एक कुम्हार को राजा ने पदच्युत कर दिया था।’ मगर ने पूछा-‘‘यह युधिष्ठिर कौन था ?’ तब वानर ने उसे यह कथा सुनाई

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