बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : किसी कुएं में गंगादत्त नाम का एक मेढकों का राजा रहता था। अपने बंधु-बांधवों द्वारा परेशान किए जाने पर एक दिन वह रहट पर चढ़कर कुएं से बाहर निकल आया। बाहर आकर वह सोचने लगा कि ऐसा कौन-सा उपाय करूं जिससे अपने बंधु-बांधवों से अपमान का बदला लिया जा सके।
गंगादत्त मन में ऐसा विचार कर ही रहा था कि तभी उसने एक काले नाग को देखा जो अपने बिल में घुस रहा था। उस नाग का नाम प्रियदर्शन था। नाग को देखकर गंगादत्त को विचार आया कि क्यों न इसी नाग के द्वारा अपने उन सभी बंधु-बांधवों का विनाश करा ढूं, जिन्होंने मुझे अपमानित किया है। कहा भी गया है कि पैर में चुभे कांटे को कांटे से निकालना ही श्रेष्ठ उपाय है। अपने बलवान शत्रु के साथ किसी अन्य बलवान शत्रु को भिड़ाकर अपना कार्य निकाल लेना चाहिए। यही सोचकर वह नाग के बिल के समीप पहुंचा और बाहर से आवाज लगाई-‘प्रियदर्शन ! मित्र, बाहर आओ।”

Also Check : Safety Slogans in Hindi

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : नाग ने सोचा कि जो जीव मुझे बाहर बुला रहा है वह मेरा सजातीय तो हो नहीं सकता, क्योंकि उसकी वाणी किसी सर्प जैसी नहीं है। किसी दूसरे के साथ मेरी मित्रता भी नहीं है इसलिए पहले मुझे यह मालूम कर लेना चाहिए कि बाहर से मुझे पुकारने वाला आखिर है कौन ? शास्त्रों में भी कहा गया है कि जिस व्यक्ति के स्वभाव, कुल तथा निवास स्थान से मनुष्य परिचित न हो तो उसके साथ संपर्क करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। हो सकता है कोई तांत्रिक या सपेरा इस प्रकार धोखा देकर मुझे पकड़ना चाह रहा हो।’ यह सब सोच-विचार कर उसने बिल के अंदर से ही उत्तर दिया-‘महाशय ! आप कौन हैं ? मैं तो आपको पहचानता नहीं हूं।’ ‘मैं मेढकों का राजा गंगादत्त हूं। आपसे मैत्री करने के लिए आया हूं।’ प्रियदर्शन बोला-‘यह कैसे हो सकता है ? किसी तिनके की भी कभी आग के साथ मित्रता हुई है ? कहा भी गया है कि जो जीव जिस जीव का वध्य होता है,

Also Check : लोमड़ी और खाना

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : वह सपने में भी उस जीव के पास नहीं जाता। फिर तुम यह व्यर्थ की बात क्यों कर रहे हो ?’ गंगादत्त कहने लगा-‘‘आपका कहना यथार्थ है भद्र। आप हमारे स्वाभाविक शत्रु हैं। किंतु मैं इस समय अपने परिवारजनों के तिरस्कार से क्षुब्ध होकर आपके पास आया हूं। मैं उनका सर्वनाश कराना चाहता हूं।’ ‘तुम रहते कहां हो ?’ ‘मैं एक कुएं में रहता हूं, भद्र।’ ‘मैं कुएं में किस प्रकार जा सकता हूं। मेरे तो पांव ही नहीं हैं। और यदि किसी प्रकार वहां चला भी जाऊं तो रहूंगा कहां ? अच्छा यही है कि तुम यहां से चले जाओ और इस काम के लिए कोई और जीव खोज लो।” यह सुनकर मेढक बोला-‘महाशय ! आप चलिए तो सही मेरे साथ। मैं बड़ी सरलता से आपको वहां प्रविष्ट करा ढूंगा। वहां जल के छोर पर एक रमणीय कोटर भी है, उसमें रहकर आप अपना पेट भी भर लेंगे।’ मेढक की बात सुनकर सर्प ने सोचा कि इसमें बुरा भी क्या है ! मैं वृद्ध हो चुका हूं। संयोग से कोई चूहा फंस गया तो ठीक है, अन्यथा अधिकांश समय भूखे ही रहना पड़ता है। यह कुलांगर यदि मेरे भोजन का सरल उपाय बता रहा है तो उसे देख ही लेना चाहिए।

Also Check : पंचतंत्र की कहानियाँ – बंदर और खूँटा

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : यह विचार कर उसने गंगादत्त से कहा-‘ठीक है, तुम आगे-आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आता हूं।’ यह सुनकर गंगादत्त हर्षित हो उठा। उसने सर्प से कहा-‘वह स्थान सुरम्य भी है और वहां आपके भोजन का खुलकर प्रबंध भी हो जाएगा, किंतु आपको मेरा एक आग्रह मानना पड़ेगा। वह यह कि आपको मेरे परिवार की रक्षा करनी होगी। मैं जिन-जिनको कहूं, केवल उन्हीं को मारकर आपने खाना होगा।’ इस पर सर्प बोला-‘तुम इस समय मेरे मित्र बन चुके हो, अतः तुमको मुझसे भयभीत नहीं होना चाहिए। जैसा तुम कहोगे, मैं उसी के अनुसार मेढकों को मारकर खाऊग’ | ‘ सर्प की तात पर विश्वास करके गंगादत्त उसे कुएं की ओर ले गया। जब वह कोटर में सुरक्षित पहुंच गया तो गंगादत ने उसको अपने शत्रु मेढक भी दिखा दिए। प्रियदर्शनं सर्प ने धीरे-धीरे करके उसके सभी शत्रु मेढक खा लिए। जब मेढक। का अभाव हो गया तो उसने गंगादत की बुलाकर कहा-‘मित्र गंगादत्त !

Also Check : अच्छे विचार हिन्दी में

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : तुम्हारे शत्रु तो मैंने समाप्त कर दिए, किंतु अब मेरे आहार का क्या होगा ? तुम स्वयं ही मुझे यहां लेकर आए थे, अतः अब मेरे भोजन का प्रबंध भी तुम्हीं को करना होगा।’ इससे तो गंगादत को चिंता होने लगी। उसने सोचा, यह मैंने कैसा अनर्थ कर डाला ? यदि इसको मना करता हूं तो यह सबको मारकर खा जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि जो व्यक्ति अपने से बलवान को मित्र बनाता है, वह अपने हाथ से ही विषपान करता है। थक-हारकर गंगादत्त को एक-एक करके अपने संबंधी प्रियदर्शन को देने ही पड़े। इस प्रकार वह सर्प धीरे-धीरे उसके सारे संबंधियों को भी चट कर गया। एक दिन उसने गंगादत्त की पली और उसके प्रिय पुत्र यमुनादत का भी भक्षण कर डाला तो गंगादत दुखी होकर विलाप करने लगा। तब प्रियदर्शन नामक उस सर्प ने गंगादत्त को फटकारते हुए कहा-‘अरे कुलकलंकी ! अब इस तरह रोने से क्या फायदा ? अपने कुल का तूने स्वयं ही तो विनाश कराया है।

Also Check : फादर्स दे कोट्स हिन्दी में

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : अब या तो मेरे भोजन का प्रबंध कर, अन्यथा मैं तुझे ही खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा।’ सर्प की यह धमकी सुनकर गंगादत रोना भूल गया। वह कोई ऐसा उपाय सोचने लगा जिससे स्वयं उसकी तो प्राण रक्षा हो सके। कुछ सोचकर उसने सर्प से कहा-‘ठीक है मित्र ! मैं तुम्हें यहां लाया हूं तो तुम्हारे आहार का भी प्रबंध करूंगा। यहां के मेढ़क समाप्त हो गए हैं तो क्या, दूसरे कुओं में तो अभी बहुत मेढक हैं। मैं अभी दूसरे कुओं के मेढकों को यहां बुलाकर लाता हूं। तुम मेरी प्रतीक्षा करना |” यह कहकर अवसर पाते ही गंगादत्त उस कुएं से बाहर निकल गया। प्रियदर्शन प्रतिक्षण उसके लौटने की प्रतीक्षा में बैठा रहा। बहुत दिनों तक गंगादत्त वापस न लौटा तो सर्प ने अपने पड़ोस में बिल बनाकर रहने वाली गोह से विनती की कि वह किसी प्रकार ऊपर जाकर गंगादत्त को खोजकर यहां ले आए। उसने गोह से कहा कि वह गंगादत्त को यह कह दे कि यदि मेढक नहीं मिलते तब भी कोई यहां मन नहीं लग रहा।’

Also Check :  मदर्स दे कोट्स हिन्दी में

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : सर्प का आग्रह सुनकर गोह बाहर गई। गंगादत्त उसे कुएं के बाहर ही मिल गया। गोह ने प्रियदर्शन की बातें उससे दोहरा दीं और आग्रह किया-‘गंगादत ! अंदर चल। तेरा मित्र तुझसे मिलने के लिए बहुत अधीर हो रहा है। उसका तेरे बिना कूप में मन नहीं लग रहा।’ यह सुनकर गंगादत्त बोला-मित्र गोधा (गोह) ! मैं अब वहां कभी नहीं जाऊंगा। संसार में भूखे व्यक्ति का कोई भरोसा नहीं, ओछे आदमी प्राय: निर्दयी होते हैं। प्रियदर्शन को कहना कि उससे मित्रता करना मेरी भूल थी। मैं अब वह भूल दोबारा नहीं दोहराऊंगा।’ यह कहानी सुनाने के बाद वानर ने मगर से कहा-‘अरे दुष्ट जलचर ! गंगादत की तरह अब मैं भी अपनी भूल कदापि नहीं दोहराऊंगा। इसलिए अब तेरा यहां से चला जाना ही उचित रहेगा।’

Also Check : श्रीमद् भगवद् गीता के अनमोल वचन

बार बार शत्रुता का फल | Baar Baar Shatruta Ka Fal : मगर ने फिर भी उसे फुसलाने का प्रयास किया-मित्र ! तुम्हारा यह आरोप सरासर गलत है। तुम सच्चाई जाने के बिना ही मजाक में कही गई बात को व्यर्थ का तूल दे रहे हो। तुम एक बार मेरे साथ चलकर सच्चाई की परख तो कर लो। यदि तुमने ऐसा न किया तो मैं इसी वृक्ष के नीचे बैठकर और भूखा-प्यासा रहकर अपनी जान दे दूंगा।’ यह सुनकर वानर हंस पड़ा। बोला-‘तुम शौक से ऐसा करो। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं कोई लम्बकर्ण नहीं जो एक बार बचकर निकल आने के बाद भी तुम्हारी चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर फिर तुम्हारे जाल में जाकर फंस जाऊँ।’ मगर ने पूछा-‘‘यह लम्बकर्ण कौन था जिसका तुमने अभी-अभी जिक्र किया?” तब वानर ने मगर को यह कथा सुनाई।

Also Check : देशभक्ति की बेहतरीन कवितायें

Share
Published by
Hind Patrika

Recent Posts

Go2win रिव्यु गाइड, बोनस और डिटेल्स | 2024 | Hind Patrika

Go2Win - भारतीय दर्शकों के लिए स्पोर्ट्सबुक और कैसीनो का नया विकल्प आज के दौर…

3 months ago

Ole777 रिव्यु गाइड, बोनस और डिटेल्स | 2023

Ole777 समीक्षा  Ole777 एक क्रिप्टो वेबसाइट  (crypto gambling website) है जिसे 2009 में लॉन्च किया…

2 years ago

मोटापा कैसे कम करें- 6 आसान तरीके – 6 Simple Ways for Weight Loss

मोटापे से छुटकारा किसे नहीं चाहिए? हर कोई अपने पेट की चर्बी से छुटकारा पाना…

2 years ago

दशहरा पर निबंध | Dussehra in Hindi | Essay On Dussehra in Hindi

दशहरा पर निबंध | Essay On Dussehra in Hindi Essay On Dussehra in Hindi : हमारे…

3 years ago

दिवाली पर निबंध | Deepawali in Hindi | Hindi Essay On Diwali

दिवाली पर निबंध  Hindi Essay On Diwali Diwali Essay in Hindi : हमारा समाज तयोहारों…

3 years ago

VBET 10 रिव्यु गाइड, बोनस और डिटेल्स | जनवरी 2022 | Hind Patrika

VBET एक ऑनलाइन कैसीनो और बैटिंग वेबसाइट है। यह वेबसाइट हाल में ही भारत में लांच…

3 years ago